MADHYAMIK HISTORY | CHAPTER 7| in Hindi | CLASS 10 | West Bengal Board | WBBSE ATR Institute
Class 10 WBBSE Notes
Madhyamik
History Chapter 7
7. 20वीं शताब्दी में भारत में महिलाओं, छात्रों और अल्पसंख्यकों के द्वारा आंदोलन का संगठन, विशेषताएँ एवं निरीक्षण
विभाग-ख
2.1.117. ताम्रलिप्त राष्ट्रीय सरकार की स्थापना किसने की?
उत्तर : सतीश चंद्र सामंत ने ताम्रलिप्त राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की।
2.1.11.8. मास्टर दा के नाम से किसे जाना जाता है ?
उत्तर : सूर्य सेन को 'मास्टर दा' के नाम से जाना जाता है।
2.1.119. बंग-भंग आंदोलन कब समाप्त हो गया ?
उत्तर : सन् 1911 ई० में।
2.1.120. लक्ष्मी भंडार की स्थापना किसने की?
उत्तर : सरला देवी चौधुरानी ने ।
[2.1.121. श्रीमती एनी बेसेंट कौन थी ?
उत्तर : श्रीमती एनी बेसेन्ट एक आयरिश महिला थी भारत में होमरूल लीग की स्थापना में इनका महत्वपूर्ण योगदान था।
| 2.1.122. भारतीय महिला राष्ट्रीय परिषद की स्थापना कब हुई?
2.1.123. 'भारत कोकिला' किन्हें कहा जाता है?
उत्तर : सरोजिनी नायडू को
2.1.124. डॉ० भीमराव अम्बेदकर कौन थे ?
उत्तर : डॉ० अम्बेडकर जी भारतीय संविधान के निर्माता थे उन्होंने सबसे पहले हमारे देश में छुआ-छूत के विरुद्ध आंदोलन किया था।
2.1.125. वाईकोम क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर : वाईकोम हमारे देश के केरल प्रांत में स्थित है, जो शिव मंदिर के लिए विख्यात है।
12.1.126. 'मूकनायक' और 'बहिष्कृत भारत' नामक पत्रिका का प्रकाशन किसने किया था ?
उत्तर : डॉ० भीमराव अम्बेदकर ने।
12.1.127. मंदिर प्रवेश बिल कब पास हुआ था ?
उत्तर : सन् 1933 ई० में।
12.1.128. केशव मेनन कौन थे?
उत्तर : केशव मेनन दक्षिण भारत के वाईकोम आन्दोलन के नेता थे, जिन्होंने दलितों के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया था।
12.1.129. नामशुद्र आंदोलन के एक नेता का नाम लिखिए ।
उत्तर : हरीचंद ठाकुर।
42.1.130. 'बंगाल नेशनल कॉलेज और स्कूल' की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर : 14 अगस्त, 1906 ई० को।
42.1.131. गाँधी जी किसे अपना राजनीतिक गुरू मानते थे?
उत्तर : गोपाल कृष्ण गोखले को।
12.1.132. नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर: 16 नवम्बर 1905 ई० में।
2.1.133. पुलिन बिहारी दास कौन थे?
उत्तर : वे ढाका के अनुशील समिति के संचालक थे।
2.1.134. भवानी मंदिर की रचना किसने की?
उत्तर : अरविन्द घोष ने।
42.1.135. चापेकर बन्धु कौन थे?
उत्तर : दामोदर चापेकर और बालकृष्ण चापेकर को चापेकर बन्धु कहा जाता है। दोनों महाराष्ट्र के क्रांतिकारी थे।
2.1.136. महाराष्ट्र के दो क्रांतिकारी संगठनों के नाम बताइये।
उत्तर : 'बाल समाज' और 'बान्धव समाज'।
2.1.137. भारत के प्रथम क्रांतिकारी कौन थे?
उत्तर : महाराष्ट्र के बासुदेव बलवन्त फड़के।
2.1.138. सावरकर बन्धु कौन थे?
उत्तर : गणेश सावरकर और विनायक दामोदर सावरकर।
12.1.139. स्वतंत्र भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री कौन थी?
उत्तर : राजकुमारी अमृता कौर।
12.1.140. बसंती देवी कौन थी?
उत्तर : बसंती देवी चित्तरंजन दास की पत्नी थी। वह असहयोग आन्दोलन की एक सक्रिय महिला आंदोलनकारी थी।
2.1.141. एंटी-सरकुलर सोसाइटी के संस्थापक कौन थे?
उत्तर: शचीन्द्र नाथ बसु ।
2.1.142. बाघा जतिन किसे कहा जाता है?
उत्तर : जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय (मुखर्जी) को ।
2.1,143. अनुशीलन समिति के संस्थापक कौन थे?
उत्तर: प्रमथ नाथ मित्र। |
2.1.144. बंगाल का प्रथम शहीद कौन था ?
उत्तर : खुदीराम बोस (1908)।
2.1.145. 'हिन्दू मेला' की स्थापना किसने की?
उत्तर : गोपाल मित्र ने ।
| 2.1.146. भारत का क्रांतिकारी कवि कौन है?
उत्तर : काजी नजरूल इस्लाम को भारत का क्रांतिकारी कवि माना जाता है।
2.1.147. 'आनंद मठ' की रचना किसने की थी?
उत्तर : बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय (चटर्जी) ने ।
2.1.148. 'युगान्तर दल' के संस्थापक कौन थे?
उत्तर : वारीन्द्र कुमार घोष ।
42.1.149. बाघा जतीन किस युद्ध में मारे गये।
उत्तर : बूढी बालम के युद्ध या कोपाद पेदा के युद्ध में ।
2.1.150.7'संजीवनी' पत्रिका के सम्पादक कौन थे?
उत्तर : कृष्ण कुमार मित्र ।
12.1.151. बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन के जनक कौन थे?
उत्तर : अरविन्द घोष ।
1 2.1.152. रशीद अली दिवस कब मनाया गया था ?
उत्तर : 12 फरवरी 1946 ई० को।
विभाग-ग
3.159. बाबा राम चन्द्र कौन थे?
उत्तर : बाबा रामचन्द्र अवध किसान सभा के एक प्रमुख नेता थे, जो अवध क्षेत्र से अपना विद्रोह शुरू किये थे तथा किसानों पर हुए अत्याचार का विरोध किये थे।
3.160. ताम्रलिप्त जातीय सरकार द्वारा किस प्रकार की कार्रवाइयाँ अपनायी गयी थीं? बीना दास प्रसिद्ध क्यों है?
उत्तर : ताम्रलिप्त जातीय सरकार द्वारा ब्रिटिश शासन के विरोध में अपनायी गई कार्यक्रमों के आधार पर बीना दास को बंगाल के गवर्नर स्टैनले जैक्सन को मारने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।6 फरवरी, 1932 ई० को दीक्षांत समारोह में गवर्नर ने जैसे ही भाषण देना प्रारंभ किया, बीना दास ने उसके सामने जाकर रिवाल्वर से गोली चला दी। निशाना चूक गया और वह बच गया। बीना दास को गिरफ्तार कर उन्हें 9 वर्ष की कड़ी सजा सुनाई गयी। जेल से छूटने के बाद भी ये क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ी रही किन्तु 26 दिसम्बर, 1986 में ऋषिकेश में इनकी मृत्यु हो गई।
3.161. बगाल में बंग-भंग विरोधी आंदोलन के दौरान छात्र आंदोलन की दो विशेषताएँ बताओ।
उत्तर : (i) छात्रों ने सर्वप्रथम विदेशी कागज, कलम का उपयोग न करने की शपथ ली साथ ही साथ विदेशी दुकानों पर धरना देना शुरू किया और लोगों से विदेशी वस्तुएँ न खरीदने की प्रार्थना की।
(ii) छात्र नेता शचीन्द्र नाथ बसु ने कृष्ण कुमार और राधाकान्त राय की सहायता से4 नवम्बर 1905 को एण्टी सर्कुलर सोसाइटी की स्थापना की जिसका उद्देश्य सरकारी शिक्षण संस्थाओं से निकाले गए छात्रों की सहायता करना था।
3.162.] 'एन्टी सर्कुलर सोसाईटी' से तुम क्या समझते हो ?
उत्तर : शचीन्द्र नाथ बोस के नेतृत्व में छात्रों ने कार्लाइल सर्कुलर के तीव्र प्रतिवाद में 'एन्टी सर्कुलर सोसायटी' की स्थापना की जिसका प्रमुख उद्देश्य उन छात्रों की शिक्षा की व्वस्था करना था जिन्हें बंग-भंग विरोधी आंदोलन में भाग लेने के कारण सरकारी कालेजों से निकाल दिया गया था।
13.163. मैडम कामा कौन थी?
उत्तर : मैडम कामा को भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की जननी कहा जाता है। विदेश में रहकर इन्होंने क्रांतिकारी आन्दोलन को चलाया। इन्होंने इण्डियन होमरूल सोसायटी (1905), पारसी इण्डियन सोसायटी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
13.164. 'अरूणा आसफ अली' क्यों स्मरणीय हैं ?
उत्तर : अरूणा आसफ अली हमारे देश की एक वीरांगना थी जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को विदेशों में जाकर जायज ठहराने का प्रयास किया था। वे प्रारम्भ से ही गाँधी जी और अब्दुल कलाम आजाद की सभाओं में भाग लेती थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने विभिन्न जुलुस, धरना-प्रदर्शन तथा बहिष्कार आन्दोलन में भाग ली तथा जेल भी गई।
13.165. दीपाली संघ की स्थापना क्यों की गई थी?
उत्तर : लीला नाग ने इस संघ की स्थापना बालिकाओं में क्रांतिकारी आदर्शों का प्रचार-प्रसार करने तथा उनमें सामाजिक और राजनीतिक जागृति पैदा करने के उद्देश्य से की थी।
13.166. 'अनुशीलन समिति' का प्रमुख कार्य क्या था?
उत्तर : क्रांतिकारी साहित्यों का प्रकाशन, वितरण, नवयुवकों को सैनिक व शारीरिक प्रशिक्षण, धन इकट्ठा हेतु लूट व डकैती तथा सरकारी अंग्रेज अधिकारियों एवं उनके सहयोगी पिटओं की हत्या करना इस संस्था की स्थापना का प्रमुख कार्य एवं उद्देश्य था।
3.167. 'मित्र मेला' का आयोजन किसने और किस उद्देश्य से किया था?
उत्तर : महाराष्ट्र के विनायक दामोदर सावरकर ने 1899 ई० में मित्र मेला का आयोजन किया था। इसका प्रमुख उद्देश्य क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के खिलाफ उत्साहित करना एवं उन्हें अस्त्र शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण देना था।
3.168. 'समाज समता संघ' की स्थापना किसने की थी? इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर : डा० भीमराव अम्बेडकर ने 1924 ई० में इस संघ की स्थापना की। इसका प्रमुख उद्देश्य हिन्दुओं और अछूतों में सामाजिक समानता के सिद्धान्त का प्रचार करना था।
13.169. 'हरिजन' पत्रिका का प्रकाशन कब और किसने किया था।
उत्तर : जनवरी 1939 ई० में, गाँधी जी ने।
3.170. अम्बेदकर द्वारा लिखित दो रचनाओं के नाम बताइए।
उत्तर : (i) रीडिल्स ऑफ हिन्दूइज्म और (2) एनीहिलेशन ऑफ कास्ट।
3.171. दलित समुदाय के प्रति गांधीजी का मत क्या था ?
उत्तर : महात्मा गांधी दलितों का उत्थान चाहते थे। उन्होंने दलितों को हरिजन का नाम दिया तथा हरिजन के नाम से दलितों के उत्थान के लिए एक पत्रिका भी निकाली । उन्होंने हरिजनों के बस्तियों में जाकर साफ-सफाई की जिम्मेदारी भी ली तथा उनके अधिकारों एवं मांगों को लेकर सदैव सजग रहे ।
13.172.बंग-भंग विरोधी आंदोलन के कुछ महिला नेत्रियों के नाम बताओ।
उत्तर : बंग- भंग विरोधी आंदोलन में भाग लेनेवाली महिला नेत्रियों में निर्मला सरकार, सरला देवी चौधुरानी, लीलावती मित्रा एवं कुमुदिनी आदि प्रमुख थी।
3.173. मातंगिनी हाजरा कौन थी एवं क्यों याद कि जाती है?
उत्तर : 'भारत छोड़ो' आन्दोलन में हमारे देश के पुरुषों, महिलाओं, छात्रों और किसानों ने भाग लिया था। बंगाल के
तामलुक क्षेत्र में मातंगिनी हाजरा भारत छोड़ो आन्दोलन का नेतृत्व कर रही थी ।वह जुलूस लेकर तामलुक थाना पर अधिकार करने की कोशिश में पुलिस की गोलियों से मारी गई उनके बलिदान की याद में जनता ने उन्हें 'देश माता' की उपाधि से विभूषित किया । इन्हें बुढ़ी गाँधी के नाम से भी जाना जाता है।
13.174.लीला नाग कौन थी?
उत्तर : लीला नाग बंगाल की एक सक्रिय आन्दोलनकारी महिला थी। 1923 ई० में हेमचन्द्र घोष के साथ मिलकर दीपाली संघ की स्थापना की । इस संघ का मुख्य उद्देश्य महिलाओं में सामाजिक एवं राजनीतिक जागरूकता पैदा करना था |
3.175. कल्पना दत्त कौन थी?
उत्तर : कल्पना दत्त एक क्रांतिकारी महिला तथा सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन की अग्रणी नेत्री थी। एक साधारण परिवार में जन्मी कल्पना में अद्म्य साहस व वीरता की भावना कूट-कूटकर भरी थी। वह बड़ी दृढ़ इच्छा शक्ति की बालिका थी। उन्होंने सूर्यसेन के साथ कई क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लिया था। फरवरी 1995 ई० में कलकत्ता में इनका निधन हो गया।
3.176. प्रीतिलता वादेदर का नाम क्यों यादगार है ?
उत्तर : यह बंगाल की राष्ट्रवादी क्रांतिकारी एवं भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रथम महिला शहीद नेत्री थी । वह एक साहसी महिला थी एवं सूर्यसेन के साथ कई क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल थी। उन्होंने एक यूरोपियन क्लब पर आक्रमण किया और पकड़े जाने के भय के कारण "पोटैशियम साइनाइड" खाकर आत्महत्या कर ली।
13.177. सूर्य सेन का नाम स्मरणीय क्यों है ?
उत्तर : बंगाल के क्रांतिकारी सूर्य सेन को 'मास्टर दा' के नाम से जाना जाता है क्योंकि वे एक अध्यापक थे । सूर्य सेन अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर सन् 1930 ई० में चटगाँव के शस्त्रागार का लूट किया। पुलिस ने 16 फरवरी 1933 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जनवरी 1934 में फाँसी पर लटका दिया।
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13.178. बरामदे युद्ध क्या था ?
उत्तर : विनय-बादल-दिनेश तीनों बंगाल वालंटियर्स के सदस्य थे । तीनों ने 8 दिसम्बर 1930 को कलकत्ता के राइटर्स बिल्डिंग में घुस कर जेल अधीक्षक (सुपरिण्टेडेन्ट) सिम्पसन की हत्या कर दी । यह खबर तुरन्त आग की तरह फैल गयी और लाल बाजार से पुलिस आकर उन्हें बरामदे में ही घेर लिया। दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई जिसे बरामदे का युद्ध कहा जाता है । विनय बसु और बादल गुप्त ने आत्महत्या कर ली । दिनेश गुप्त को पकड़कर फाँसी दे दी गई ।
3.179. ज्योति राव फुले कौन थे?
उत्तर : ज्योतिराव फुले ने 1873 ई में 'सत्य शोधक समाज' की स्थापना किया। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य समाज के निम्न, दलित एवं कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय दिलाना था । इस संस्था ने अनाथों तथा स्त्रियों के लिए अनेक अनाथालय तथा विद्यालयों की स्थापना की और ब्राह्मणवाद का घोर विरोध किया। |
3.180. बंगाल का नमोशुद्र आंदोलन क्या था ?
उत्तर : पश्चिम बंगाल की अनुसूचित जातियों में नमोशुद्र सबसे प्रमुख जाति थी । यह एक शिक्षित जनजाति थी, जिसने दलितों के अधिकार प्राप्ति में बहुत संघर्ष किया था । बंगाल के हिन्दुओं में नामशुद्र को अस्पृश्य (अछूत) माना जाता था जिसके कारण इन्हें जगह-जगह ब्राह्मणों की अवहेलना सहनी पड़ती थी और सामाजिक विषमता का शिकार होना पड़ता था । सन् 1872 ई० में बाध्य होकर इन्होंने ब्राह्मणों के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया।
विभाग-घ
4.52. सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन में महिलाओं के योगदान की प्रकृति का विश्लेषण करें।
उत्तर : 20वीं शताब्दी के आरम्भ में सबसे पहले बंगाल में ही सशस्त्र क्रान्ति का जन्म हुआ, जिसमें पुरुषों के साथ-साथ नारियों ने भी प्राणों की बाजी लगा दी। क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रथम चरण में सरला देवी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बंगाल की दूसरी क्रांतिकारी महिला ननीबाला देवी थी जो जेल में एक अपराधी की भाँति रहकर अनुशीलन समिति को खबर पहुँचात रही। बाघा जतिन और उनके कुछ क्रांतिकारी साथियों को उन्होंने आश्रय भी दिया था। क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रिय हो के कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जहाँ उन्हें अत्याचार का शिकार होना पड़ा। सन् 1920 ई० आते-आते क्रान्तिकारी आन्दोलनों में महिलाओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ने लगी। उच्च घराने की महिलाएं भी आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगीं। देश की मेधावी छात्राएँ पढ़ाई-लिखाई छोड़कर क्रान्तिकारी आन्दोलन में कूद पड़ी। मेधावी छात्रा कल्याणी दास ने छात्री संघ की स्थापना की जिसका उद्देश्य छात्राओं को क्रान्ति के लिए उत्साहित करना था। सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाग लेने वाली महिलाओं में बंगाल की प्रतिभा भद्र, किरण चक्रवर्ती, ननी बाला देवी, बीना दास, लीला नाग, कल्याणी दास, रानी गिडालू, कल्पना दत्त, प्रीतिलता वादेदर, उज्ज्वला मजूमदार, शान्ति घोष और सुनीति चौधरी आदि प्रमुख थीं। बंगाल वॉलेंटियर्स की उग्रवादी सदस्या उज्ज्वला मजूमदार ने अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियों से अंग्रेजी सरकार की निंद उड़ा दी। लीला नाग ने सन् 1923 ई० में ढाका में दिपाली संघ' नामक एक महत्वपूर्ण संस्था की स्थापना की। लीला नाग ने नारी जागरण और नारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में ज्यादातर कार्य की। सुभाषचन्द्र बोस के आह्वान पर बंगाल की अनेक महिलाओं ने स्वयंसेवी संगठनों के सदस्य के रूप में भाग ली और धीरे-धीरे क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गयी। सूर्य सेन भी युवतियों और छात्राओं को आंदोलन से जुड़ने की प्रेरणा देते थे। बंगाल की कल्पना दत्त और प्रीतिलता वादेदर उन्हीं की प्रेरणा से सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हुई थी। कल्पना दत्त का जन्म चटगाँव के श्रीपुर गाँव में हुआ था। छात्र जीवन में ही उनके ऊपर राष्ट्रीयता एवं क्रान्तिकारी विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा और वह गाँधी जी के विचारों से प्रेरित होकर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़ीं। सूर्य सेन ने 1931 ई० में कल्पना और प्रीतिलता के साथ मिलकर एक युरोपियन क्लब पर आक्रमण की योजना बनाया था पर पुलिस को इस बात की सूचना मिल गई और क्लब के पास ही कल्पना पुरुष वेश में गिरफ्तार कर ली गयी। विदेशों में भी क्रान्तिकारी आन्दोलन सक्रिय था जिसका नेतृत्व पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी कर रही थीं। ऐसी महिलाओं में मैडम कामा सबसे अग्रणी थीं। वह भारत तथा विदेशों में क्रान्तिकारी आन्दोलनों में श्यामजी कृष्ण वर्मा, एस०आर० राणा के साथ जुड़ी थीं।
4.53. भारत में दलित आंदोलन के विकास में डॉ० बी० आर० अम्बेदकर द्वारा पालन की गई भूमिका का उल्लेख करो।
उत्तर : डॉ० भीमराव अम्बेदकर दलित जाति के उद्धारक माने जाते हैं जिन्होंने सबसे पहले दलितों के उत्थान के लिए कदम बढ़ाया था। इनका जन्म महार नामक अछूत जाति में हुआ था। इनका परिवार कबीर पंथी था। इनके ऊपर भी कबीर दास के विचारों का प्रभाव पड़ा था। कबीर दास के गुणों एवं विचारों से प्रेरित होकर इन्होंने समाज में व्याप्त अस्पृश्यता को दूर करने का बीड़ा उठाया। भारतीय समाज में पीड़ित, शोषित तथा दलित वर्ग को समानता का अधिकार दिलाने के उद्देश्य से सन् 1920 ई० में अम्बेदकर जी ने मराठी भाषा में मूकनायक (गूंगों का नेता) नामक समाचार पत्र-का प्रकाशन शुरु किया। अस्पृश्य (दलित) जाति के लोगों के नैतिक तथा भौतिक उन्नति के लिये 1924 ई० में बम्बई में 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा' की स्थापना की। 1927 ई० में प्रत्येक भारतीय को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने 'बहिष्कृत भारत' नामक मराठी पत्र का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने अछूतों (दलितों) के लिए मंदिरों में प्रवेश तथा जनसाधारण के कुँए से पानी भरने के अधिकार के लिए आन्दोलन किया। अछूतों के लिए अलग मताधिकार की भी मांग उन्होंने की थी। मंदिरों में दलितों एवं अछूतों के प्रवेषाधिकार के लिए उन्होंने 1930 ई० में आंदोलन शुरू कर दिया। मंदिर में प्रवेश के अधिकार को लेकर उन्होंने सत्याग्रह शुरू कर दिया। मंदिर के सभी फाटक बंद होने के कारण सभी सत्याग्रह फाटक के बाहर ही आन्दोलन करते रहे। लगभग एक महीने तक सघर्ष चलता रहा और संघर्ष रुकने का नाम नहीं ले रहा था।1933 ई० में बम्बई में मंदिर प्रवेश बिल' (Temple Entry Bill) पास किया गया। इस बिल के द्वारा दलितों एवं अस्पृश्य जातियों के लिए मंदिर में राजनीतिक प्रवेशाधिकार मिल गया। महाड़ एवं नासिक में अम्बेदकर जी ने दलितों के उद्धार के लिए सत्याग्रह आन्दोलन चलाया जिसमें सवर्ण (उच्च वर्ग) के हिन्दुओं ने उग्र प्रतिक्रिया की और उन्हें प्रताड़ना दिया। जिससे क्षुब्ध होकर अम्बेदकर जी यह सोचने पर मजबूर हो के गये कि वे हिन्दू धर्म में रहें या त्याग दें। सन् 1955 ई० में एक दलित सम्मेलन में उन्होंने ऐलान किया कि “मेरा दुर्भाग्य है कि मैं हिन्दू धर्म में जन्मा हूँ पर बड़ी गम्भीरता से कहना चाहता हूँ कि मैं एक हिन्दू के रूप में नहीं मरूँगा।" इसी घोषणा का पालन करते हुए अम्बेदकर जी अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया।
|454. । प्रतिरोध आंदोलन में भारतीय नारियों के योगदान का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर : लार्ड कर्जन ने बंगाल की बढ़ती हुई राष्ट्रीय चेतना को कम करने तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता को खण्डित करने के उद्देश्य से 16 अक्टूबर, 1905 ई० के लगभग कानून लागू कर दिया । इसके लागू होते ही पूरे भारत में विरोध दर्शन शुरू हो गया । बंग-भंग विरोध आंदोलन में समाज के सभी वर्ग के लोगों ने भाग लिया । इस आन्दोलन में स्त्रियाँ एवं छात्राओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया । बंगाल के विभाजन का विरोध करने के लिए स्वदेशी और बहिष्कार आन्दोलन चलाया गया जिसमें महिला अन्दोलनकारियों ने कलकत्ता के कई स्थानों पर धरना और प्रदर्शन की। महिलाओं ने विदेशी प्रसाधन की वस्तुओं एवं कपड़ों का उपयोग छोड़ दिया । बंगाल की प्रतिष्ठत घरों की औरतों ने विदेशी शराब की दुकानों पर धरना दिया, जुलूसों में भाग लिया तथा विदेशी उपहार लेना बन्द कर दिया । यहाँ तक कि स्त्रियों ने सुहाग की निशानी चुडियों (विदेशी) को पहनने से इन्कार कर दिया तथा रसोई घरों में विदेशी नमक का उपयोग करना छोड़ दिया । घर-घर घुमकर वे लोगों को विदेशी सामानों का प्रयोग न करने का अनुरोध की। महिलाओं ने एक दूसरे के हाथों में राखी बांधकर एकता और अखण्डता का परिचय दिया। उन्होंने सरकारी कार्यालयों के बाहर धरना एवं प्रदर्शन किया तथा विदेशी कपड़ों की होली जलाई । ऐसी महिलाओं में निर्मला सरकार, सरला देवी चौधुरानी, लीलावती मित्रा, कुमुदिनी और मांगी दास सबसे अग्रणी थी । देवी चौधुरानी ने अपने मित्रों तथा अनुयायियों को देश की आजादी के लिए अपना जीवन कुर्बान करने का संकल्प लेने का दबाव डाला और उन्हें प्रोत्साहित किया । इन्होंने लक्ष्मी भण्डार की स्थापना की ब्रिटिश सरकार आन्दोलनकारियों से भयभीत हो गयी और सोचा कि भारतीय जनता की उपेक्षा कर बंगाल का विभाजन सही नहीं है । अन्त में भारत सम्राट जार्ज पंचम ने सन 1911 ई० में बंग-भंग कानून रद्द कर दिया। यह भारतीयों का प्रथम संयुक्त आंदोलन था जिसने राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।
4.55.20वीं सदी में गांधीजी द्वारा संगठित आंदोलन के चरण में नारी आंदोलन की विशेषताओं का विश्लेषण करो ।
उत्तर : प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय महिलाओं ने समय-समय पर अपनी साहस, वीरता और राग का परिचय दिया है और देश के लिए मर-मिटने को हमेशा तत्पर रही है। वैदिक काल में नारियों ने वेदों की व्याख्या की, मुगल काल में रानी दुर्गावती ने मुगलों से लोहा ली और 1857 के महाविद्रोह में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने मरते दम तक अंग्रेजों से लड़ती रही। भारत के स्वाधीनता आन्दोलनों में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गाँधी जी द्वारा चलाये गये 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' और 'भारत छोड़ो' आन्दोलनों में महिलाओं की भागीदारी का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
सविनय अवज्ञा आंदोलन : महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत अप्रैल, 1930 ई० में 'डांडी मार्च' से किया था। ये समुद्र तट पर नमक बनाकर सरकारी कानून को भंग किए। यह आन्दोलन घीरे धीरे भारत के सभी प्रान्तों में फैल गया। इस आन्दोलन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। महिलाएँ समुद्र तट पर सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम को प्रेरित करती थीं। देश के लगभग सभी प्रान्तों की महिलाओं ने रसोई घर से निकलकर, पर्दा प्रथा को त्यागकर इस आंदोलन में हिस्सा लिया। बम्बई और दिल्ली की महिलाओं ने इस आन्दोलन में काफी उत्साह दिखाया था। उन्होंने विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर धरना दी जिसके कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा उनकी गिरफ्तारियाँ भी हुई, फिर भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। कस्तूरबा गाँधी, कमला नेहरू, सरोजिनी नायडू, वासन्ती देवी, उर्मिला देवी, सरला बाला देवी और लीला नाग आदि ने इस आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाया और दमनात्मक नीति का सहारा लिया। महिलाओं के जुलूस और प्रदर्शन पर लाठी चार्ज किया गया गिरफ्तारियाँ भी की गई फिर भी इनका उत्साह कम नहीं हुआ और उनकी भागीदारी बढ़ती गई।
भारत छोड़ो आंदोलन : गाँधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो' के नारे के साथ सन् 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन' आरम्भ किया। उन्होंने देशवासियों को 'करो या मरो' का नारा दिया। इस आन्दोलन में समाज के सभी वर्ग के लोगों की भांति नारियों ने भी जमकर हिस्सा लिया। नारियों में विशेषकर कॉलेज और स्कूल की छात्राओं ने इस आन्दोलन में भाग ली थी। मातंगिनी हाजरा, अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, सुचेता कृपलानी और कनकलता बरुआ आदि प्रमुख महिलाएँ थी जिन्होंने भारत के विभिन्न भागों में महिलाओं का नेतृत्व की। सभा और जुलूसों में महिलाएँ बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थीं। मातंगिनी हाजरा बंगाल के तामलुक क्षेत्र का नेतृत्व कर रही थीं उन्होंने29 सितम्बर, 1942 ई० को सरकारी अदालत और पुलिस चौकी पर कब्जे के लिए जुलूस निकाली और हाथ में तिरंगा थामे एक सभा को सम्बोधित कर रही थी। उसी समय पुलिस के लाठी चार्ज और गोली-बारी में उनको गोली लग गयी। घटना स्थल पर ही उनकी मौत हो गई। दूसरी आन्दोलनकारी अरुणा आसफ अली भूमिगत आतंकवादियों की संगठनकर्ता थीं। वह भूमिगत रहकर महिलाओं और छात्राओं को अंग्रेजी दासता से मुक्ति के लिए प्रेरित करती रहीं। 1939 ई० में सुचेता कृपलानी गाँधी जी से मिलकर कांग्रेस कार्य समिति से जुड़ गई। बाद में उन्हें कांग्रेस की महिला विभाग के गठन की जिम्मेदारीदी गई।
4.56. सूर्य सेन (मास्टर दा) का देश के स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान था? संक्षिप्त परिचय दीजिए। अथवा, 'चटगाँव शस्त्रागार लूट' (Chittagong Armoury Raid) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : सूर्यसेन को भारतीय इतिहास में 'मास्टर दा' के नाम से जाना जाता है। इनका जन्म 22 मार्च, 1894 ई० को चट्टगाँव में हुआ था। इनके पिता (राम निरंजन) एक शिक्षक थे। सूर्यसेन की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा चट्टगाँव में ही हुई थी। बचपन से ही ये साहसी, निडर और स्वाभिमानी थे 22 वर्ष की अवस्था में राष्ट्रीय विचारों से प्रेरित होकर बंगाल की क्रांतिकारी संस्था 'युगान्तर दल' के सदस्य बन गए। चटगांव के स्थानीय युवाओं और छात्रों को संगठित कर उन्हें क्रांति के लिए प्रोत्साहित करते थे। वे शिक्षक का कार्य भी करते थे साथ ही छात्रों को क्रांति के लिए उत्साहित भी करते थे। छात्रों में इनका इतना प्रभाव था कि छात्र इनके लिए जान देने को तैयार रहते थे। चट्टगाँव का क्रांतिकारी दल इनके नेतृत्व में काफी प्रसिद्ध हो गया था। अनंत सिंह, गणेश घोष, अम्बिका चक्रवर्ती और लोकनाथ जैसे क्रांतिकारी युवक इनके दल के प्रमुख सदस्ये थे।
चटगाँव शस्त्रागार लूट : सूर्य सेन के नेतृत्व में बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन का विकास तीव्र गति से होने लगा। राष्ट्रीय विद्यालय के शिक्षक होते हुए भी उन्होंने सशस्त्र विद्रोहियों को सुसंगठित किया और क्रांतिकारियों को हथियार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकारी शस्त्रागारों को लूटने की योजना बनाया योजनानुसार, 18 अप्रैल 1930 ई० को सूर्य सेन ने अपने सहयोगी कल्पना दत्त और प्रीतिलता वादेदर एवं छात्र सेना को लेकर मध्य रात्रि में चट्टगाँव शस्त्रागार पर धावा बोल दिया और वहाँ के हथियारों पर अधिकार जमा लिया। परन्तु गोला - बारुद उनके हाथ नहीं लगे। क्रांतिकारियों ने रेल लाइन, तार एवं टेलीफोन लाइन को नष्ट कर दिया। क्रांतिकारियों ने पुलिस शस्त्रागार के सामने ही 'बंदेमातरम्' और 'इंकलाब जिन्दाबाद' के नारों के साथ प्रांतीय क्रांतिकारी सरकार का गठन कर सूर्य सेन को अपना अध्यक्ष चुना और अंग्रेजी झण्डे को उतारकार अपना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया दुूसरे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना को बंगाल की खाड़ी में ही रोक दिया। 22 अप्रैल को अंग्रेजी सेना ने उन्हें घेर लिया और दोनों के बीच भारी लड़ाई हुई जिसमें 12 क्रांतिकारी शहीद हो गए सूर्य सेन लगभग तीन वर्षों तक अंग्रेजों से लड़ते रहे। 16 फरवरी 1933 ई० को पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया। 12 जनवरी, 1934 ई० को उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया इस प्रकार हमारे देश का एक महान क्रांतिकारी भारत माता की गोद में सदा के लिए सो गया।
4.57. गांधीवादी आंदोलन में छात्र विद्रोह की विशेषताएँ एवं महत्व का उल्लेख करो।
उत्तर : गाँधी जी हमारे देश के एक महान नेता थे, जिन्होंने देश को स्वाधीन कराने के लिए कई महत्वपूर्ण आन्दोलन - असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन चलाए जिसमें छात्रों का महत्वपूर्ण योगदान था।
असहयोग आन्दोलन : गाँधी जी ने सन् 1920 ई० में रौलेट एक्ट और जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड के विरोध में अंग्रेजो के खिलाफ असहयोग आंदोलन छेड़ दिया। देशबन्धु चितरंजन दास और गाँधी जी ने छात्रों को आन्दोलन में भाग लेने के लिए आह्वान किया। उनके आह्वान पर हजारों छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को त्याग कर आन्दोलन में शामिल हो गए। पूरे देश में लगभग 9000 विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों को त्याग दिया था, जिनके लिए लगभग 80 राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गयी थी। ये छात्र इन शिक्षण संस्थानों में पढ़ने लगे। सरकारी शिक्षा का बहिष्कार आंदोलन बंगाल में चित्तरंजन दास और नेताजी के नेतृत्व में सबसे अधिक सफल रहा। पंजाब में आन्दोलन का नेतृत्व लाला लाजपत राय के हाथों में था जिनके आह्वान पर छात्रों ने सरकारी शिक्षण संस्थानों को त्यागकर असहयोग आन्दोलन में शामिल हुए थे।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन : 6 अप्रैल, 1930 ई० को नमक कानून तोड़कर गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ किया। इस आन्दोलन में भी छात्रों ने सक्रिय योगदान दिया था। गाँधी जी के आह्वान पर हजारों छात्र-छात्राएं सरकारी शिक्षण संस्थानों को त्यागकर इस आन्दोलन में कूद पड़े। गुजरात विद्यापीठ के कई छात्र गाँधी जी के साथ ही पैदल साबरमती आश्रम से डांडी तक गये। छात्रों ने विदेशी वस्तुओं एवं शराब की दुकानो पर धरना-प्रदर्शन किया, विदेशी कपड़ों की होली जलाई तथा जनता से विदेशी वस्तुएँ न खरीदने का आग्रह किया।
भारत छोड़ो आंदोलन : 8 अगस्त, 1942 ई० को गाँधी जी ने 'करो या मरो' के आह्वान के साथ 'भारत छोड़ो आन्दोलन' की शुरुआत की। यह आन्दोलन गाँधी जी का सबसे अन्तिम और लोकप्रिय आन्दोलन था। अन्य आन्दोलनों की तरह इस आन्दोलन में भी छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संगठन ने इसमें महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आन्दोलन शुरू होते ही गाँधी जी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गये तभी छात्रों ने शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार करके आन्दोलन में कूद पड़े। दिल्ली, बम्बई, बंगाल और केरल के विद्यार्थियों में उत्साह अधिक था। पुलिस के दमन चक्र और बड़े बड़े नेताओं की अनुपस्थिति में नवयुवक छात्र हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम देने लगे। हिंसक छात्र जगह-जगह रेल की पटरियाँ उखाड़ दिये, पूल तोड़ दिये, तार एवं टेलीफोन की लाइनें काट दी, सरकारी भवन तथा दफ्तरों में तोड़-फोड़ की और वहाँ राष्ट्रीय झण्डा फहरा दिये। 11 अगस्त, 1942 ई० को पटना में सात छात्र विरोध करते हुए शहीद हो गये।
4.58. 20वीं सदी में औपनिवेशिक प्रभुत्व के विरोध में युवाओं के विद्रोह का विश्लेषण करो।
उत्तर : जिस तरह उदारपंथी नेताओं की नीति से राष्ट्रीय काँग्रेस का ही एक पक्ष असंतुष्ट होकर उग्रपंथी बन गया, उसी तरह उग्रपंथियों की नीतियों से भी असंतुष्ट वर्ग संत्रासवादी नीति से काम लेने की तैयारी कर रहा था । यह वर्ग उन बलिदानी युवक-युवतियों का क्रांतिकारी वर्ग था जो हिंसा-अहिंसा किसी भी नीति का सहारा लेकर विदेशियों को देश से बाहर निकाल फेंकने को इच्छुक था । जब सरकारी तंत्र ने जन-आंदोलनों का क्रूरतापूर्वक दमन आरंभ कर दिया और निःसहाय स्वयंसेवकों पर मनमाने जुल्म ढाने लगा, तब कुछ देशभक्तों के हृदय प्रतिशोध की ज्वाला से सुलग उठे और उन्होंने हिंसा और आतंक की नीति अपनाने का संकल्प लिया । यह दल काँग्रेसी खेमे से बाहर रहकर अपनी योजनाएँ बनाता था और तदनुकूल कार्य करता था । बीसवीं सदी के आरंभ में आतंकवाद अथवा संत्रासवाद की लहर मुख्यतः बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश में तेजी के साथ उठी।
क्रांतिकारी न तो वैधानिक सुधार चाहते थे और न स्वशासन की माँग करते थे, बल्कि वे अपनी मातृभूमि को विदेशी शासन श्रृंखला से सर्वथा मुक्त देखना चाहते थे। उनका विश्वास था कि हिंसा और शक्ति द्वारा स्थापित ब्रिटिश राज उसी हिंसा और शक्ति द्वारा समाप्त किया जा सकता है । अतएव आतंकवादियों ने अंग्रेजों के जुल्मों का जवाब गोलियों तथा बम के गोलों से देना आरंभ किया । वे हत्यारे न थे और न लुटेरे थे, किन्तु अंग्रेज हत्यारों और अत्याचारियों को उचित सबक सिखाने के लिए वे उनकी हत्या करना आवश्यक समझते थे । बड़े-बड़े अंग्रेज पदाधिकारियों की हत्या करना उनके आंदोलन का महत्तवपूर्ण अंग था । हथियार इकट्ठा करना, बम बनाना, गुप्त सभाएँ करना, धन के लिए सरकारी खजाना लूटना तथा समय-समय पर किसी अंग्रेज पदाधिकारी की हत्या करना उनके क्रियाकलाप थे । वे पूर्ण अराजकतावादी थे जिनकी दृष्टि में विदेशी प्रशासन के लिए कोई नरमी नहीं था। उनका एकमात्र उद्देश्य था विदेशी चंगुल से मातृभूमि की मुक्ति ।
4.59. बंगाल में नमोशुद्र आंदोलन के विकास का उल्लेख करो -
उत्तर : पश्चिम बंगाल की अनुसूचित जातियों में नमोशुद्र सबसे प्रमुख जाति थी । यह एक शिक्षित जनजाति थी, जिसने दलितों के अधिकार प्राप्ति में बहुत संघर्ष किया था । इस जाति को पहले चण्डाल' के नाम से जाना जाता था। यह जाति वैदिक धर्म के चार वर्णों से बाहर थी और वर्ण की श्रेणी में आते थे । इनका प्रमुख पेशा खेती करना तथा नाव चलाना था। जया चटर्जी बताती हैं कि 1870 के दशक में बाकरगंज और फरीदपुर के चण्डालों ने हिन्दुओं का बहिष्कार शुरू कर दिया जब उनके एक प्रधान के खाने के नियंत्रण को हिन्दुओं ने अस्वीकार कर दिया । इसके बाद उन्होंने अपनी सामाजिक स्थिति को सुदृढ़ किया और उनमें सुधार भी किया । उन्होंने स्वयं अपनी आदरणीय पदवी 'नामशुद्र' को धारण कर लिया।
भारत की एक और जनजाति मतुआ सम्प्रदाय के लोग भी नामशुद्र की उपाधि ले लिया था। बंगाल के हिन्दुओं में नामशुद्र को अस्पृश्य (अछूत) माना जाता था जिसके कारण इन्हें जगह-जगह ब्राह्मणों की अवहेलना सहनी पड़़ती थी और सामाजिक विषमता का शिकार होना पड़ता था । सन् 1872 ई० में बाध्य होकर इन्होंने ब्राह्मणों के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया। इन्होंने घोषणा किया कि किसी भी उच्च जाति के घरों में काम तब तक नहीं करेंगे जब तक उन्हें उच्च श्रेणी में स्थान नहीं दिया जाता है । यह आंदोलन हरीचंद ठाकुर के नेतृत्व में 'ओराकांडी' नामक ग्राम से आरम्भ हुआ था। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में यह विधान मण्डलों, सरकारी नौकरी तथा सरकारी संस्थानों में आरक्षण की मांग करने लगे। 1907 ई० में हरीचंद के पुत्र गुरुचंद ठाकुर ने बंगाल के गवर्नरके निकट उनकी स्थिति सुधारने के लिए आवेदन पत्र भी लिखा था । इन्होंने मुस्लिम लीग से भी सम्पर्क बनाया था परन्तु विभाजन के बाद जल्द ही सम्पर्क टूट गया।
4.60. दलित आंदोलन संगठित करने में ज्योति राव फुले एवं श्री नारायण गुरु के अवदान को लिखो।
उत्तर : ज्योतिबा फुले : पश्चिमी भारत में ज्योतिराव गोविन्दराव फूले 18271890 ने निम्न जातियों के लिए संघर्ष किया । कई स्थानों पर महिलाओं के लिए आश्रम का निर्माण करवाया। ज्योतिराव ने पुणे में माली कुल में जन्म लिया था। उनके पूर्वज पेशवाओं को पुष्प, मालाएँ इत्यादि उपलब्ध कराया करते थे इसलिए उन्हें फूले कहा जाने लगा था।
नारायण गुरु : श्री नारायण गुरु (1854-1928) ने केरल में तथा केरल के बाहर एस.एन.डी.पी. (श्री नारायण धर्म परिपालन योगम्) नाम की एक संस्था तथा उसकी शाखाएं स्थापित की । श्री नारायण गुरू तथा उनके सहयोगियों ने एझवा (एक अस्पृश्य जाति) वर्ग के उत्थान के लिए दो बिन्दुओं का कार्यक्रम बनाया जिसका पहला विन्दु था कि अपने से नीची जातियों के प्रति अस्पृश्यता की प्रथा को समाप्त करना । इसके अतिरिक्त नारायण गुरु ने मन्दिर बनवाए जिसके दरवाजे सभी वर्गों के लिए खुले थे।
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