History Chapter 4. संगठनात्मक क्रियाओं के प्रारंभिक चरण : विशेषताएँ तथा विश्लेषण | Madhyamik | Class 10 | NOTES | WBBSE
Class 10 WBBSE Notes
History Chapter 4
विभाग-ख
उत्तर : रानी लक्ष्मीबाई ने।
12.1.75. लखनऊ में 1857 ई० का विद्रोह कब आरंभ हुआ?
उत्तर : 4 जून, 1857 ई० में।
12.1.76. 1857 ई० के विद्रोह के तुरन्त बाद इसे एक 'राष्ट्रीय विद्रोह' की संज्ञा किसने दी?
उत्तर : बेंजामिन डिजरायली ने।
2.1.77. किसकी वीरता से प्रभावित होकर ब्रिटिश सैन्य अधिकारी ह्यूरोज ने कहा- 'भारतीय क्रांतिकारियों में यह अकेली मर्द है'?
उत्तर : रानी लक्ष्मीबाई के।
12.1.78. महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र किसने पाठ किया था?
उत्तर : महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र लार्ड कैनिंग ने पढ़ा था।
|2.1.79. एन्टी सर्कुलर सोसाइटी की स्थापना किसने की ?
उत्तर : एन्टी सर्कुलर सोसायटी की स्थापना सचिन्द्र प्रसाद बोस ने की।
2.1.80. बंगाल में राजनीतिक आन्दोलन को आरम्भ करने का श्रेय किसको है?
उत्तर : राजा राममोहन राय को।
12.1.81. 'बंगभाषा प्रकाशिका सभा' की स्थापना किस वर्ष हुई?
उत्तर : सन् 1836 ई० में।
2.1.82. 'बंगभाषा प्रकाशिका सभा' की स्थापना कहाँ हुई थी?
उत्तर : कलकत्ता में।
12.1.83. 'लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन' या 'बंगाल जमींदार सभा' की स्थापना किस वर्ष हुआ था
उत्तर : सन् 1838 ई० में।
12.1.84. 'लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन' या 'बंगाल जमींदार सभा' की स्थापना कहाँ हुआ था?
उत्तर : कोलकाता में।
12.1.85. 'इण्डियन लीग' के संस्थापक कौन थे?
उत्तर : शिशिर कुमार घोष।
12.1.86. गगनेन्द्रनाथ टैगोर कौन थे?
उत्तर : एक उच्चकोटि के चित्रकार थे।
2.1.87. 'पील आयोग' (Pay Commission) का गठन किस वर्ष हुआ था?
उत्तर : सन् 1858 ई० में।
|2.1.88. 'हिन्दू मेला' का गठन किस वर्ष हुआ था?
उत्तर : सन् 1867 ई० में।
[2.1.89. 'गोरा' उपन्यास की रचना कब हुई?
उत्तर : सन् 1909 ई० में।
2.1.90. किसने कहा कि, "गोरा मात्र एक उपन्यास नहीं है, यह आधुनिक भारत का महाकाव्य है?"
उत्तर : 'कृष्णा कृपलानी' ने ।
12.1.91. 'गोरा' उपन्यास में 'गोरा' का साहित्यिक अर्थ क्या है?
उत्तर : 'गोरा' उपन्यास में 'गोरा' का साहित्यिक अर्थ 'गौर वर्ण का व्यक्ति' है।
2.1.92.] किस वर्ष अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने 'भारत माता' का चित्र बनाया?
उत्तर : सन् 1905 ई० में।
12.1.93. 'भारत माता' की तुलना किससे किया गया है?
उत्तर : भारतीय संस्कृति की सभी देवी-देवताओं से, विशेषकर देवी दुर्गा के रूप से।
विभाग-ग
3.67. गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने औपनिवेशिक समाज की समालोयना किस प्रकार किया है?
उत्तर : गगनेन्द्रनाथ टैगोर जी एक महान चित्रकार एवं कार्टूनिस्ट थे। इनका जन्म 18 सितम्बर, 1867 ई० को ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसिडेन्सी के कलकत्ता में हुआ था। ये रवीन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे तथा अवनीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे। उनके पिता का नाम गगनेन्द्रनाथ टैगोर तथा दादा का नाम गिरीन्द्रनाथ टैगोर था। ये एक महान चित्रकार थे। इनके चित्र दूसरों से हट कर होती थी तथा प्रत्येक चित्रों में औपनिवेशिक समाज का व्यंग्य छिपा होता था उन्होंने उस समय के जाने माने चित्रकार हरिनारायण बंदोपाध्याय से प्रशिक्षण प्राप्त किया था। गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने चित्रकला एवं कार्टून से संबंधित अनेकों कार्य किये। जैसे- सन् 1917 ई० में बाजरा', 1917 में ही अद्भुत लोक' तथा सन् 1921 ई० में 'नव हलोडे' आदि थे जो औपनिवेशिक समाज का व्यंग्यपूर्ण चित्रण को दर्शाती थी। इनके चित्रों में विभिन्न प्रकार के व्यंग्य छिपे होते थे। जैसे - जाति प्रथा, पाखण्ड, शिक्षा का घोर विरोध भी छिपा रहता था। इतना ही नहीं, उस समय के प्रसिद्ध नाटककार ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर के नाटक एमन कर्म आर करबो ना' में गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हास्यास्पद चित्रों का समावेश मिलता है। उनके नाटक के प्रमुख पात्र हिन्दू पुजारी तथा पश्चिमी 'अलिफ बाबू' तथा 'द फाल्स बाबू' इत्यादि गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हाथों की उपज हैं।
| 3.68. शिक्षा के विस्तार में मुद्रित पुस्तकों ने किस प्रकार मुख्य भूमिका पालन की?
उत्तर : शिक्षा के विकास एवं प्रसार में प्रेसों तथा मुद्रित पुस्तकों की भूमिका : राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रत्येक पहलू के विषय में चाहे वह शिक्षा हो या सांस्कृतिक, आर्थिक हो या सामाजिक, अथवा राजनैतिक, प्रेस तथा उससे मुद्रित पुस्तकों की भूमिका उल्लेखनीय रही है। प्रेस के ही माध्यम से विभिन्न राजनैतिक नेताओं ने अपने विचारों को आम जनता तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की। जनता में जागृति पैदा करने के उद्देश्य से मुद्रणालय और मुद्रित पुस्तकों का सहारा लिया।
369. 1857 के महा विद्रोह के दो विशेषताओं का उल्लेख करो।
उत्तर : विशेषताएँ :
(1) 1857 ई० का महा विद्रोह भारतवासियों के भीतर देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय प्रेम की भावना को जागृत किया था । (2) इस विद्रोह के नेताओं में राष्ट्रीय चरित्र की भावना कूट-कूट कर भरी थी जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के रूप में दिखाई दिया।
3.70. भारत सभा की स्थापना के दो उद्देश्यों का उल्लेख करो।
उत्तर : दो उद्देश्य :
(1) सम्पूर्ण देश में लोकमत का निर्माण और (2) हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता और मैत्री की स्थापना आदि। (3). गगनेन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा चित्रित कुछ कार्टून (हास्याप्रद चित्रों) के नाम बताइए। उत्तर : गगनेन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा चित्रित कुछ कार्टून है- अद्भुत लोक, नव हलोड, बिरूप बाजरा, भोंडोर बहादुर, अली बाबू, द फाल्स बाबू।
|3.72. 'आनन्दमठ' उपन्यास की विषय-वस्तु क्या थी ?
उत्तर : 'आनन्दमठ' उपन्यास में 1770 ई० में आरम्भ हुए बंगाल के भीषण आकाल एवं संन्यासी विद्रोह का वर्णन है।
3.73. 'कलकत्ता स्टुडेण्ट्स एसोसिएशन' का गठन कब और किसने किया?
उत्तर : सन् 1875 ई० में आनन्द मोहन बोस ने किया।
13.74 'इण्डियन सोसाइटी' का गठन कब और किसने किया?
उत्तर : सन् 1872 ई० में आनन्द मोहन बोस ने किया।
3.75. 'इण्डियन एसोसिएशन' की स्थापना कहाँ और किसने किया?
उत्तर : कोलकाता में आनन्द मोहन बोस और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने किया।
13.76. झाँसी में 1857 के विद्रोह को किस ब्रिटिश नायक ने कब समाप्त किया?
उत्तर : ब्रिटिश नायक ह्यूरोज ने 3 अप्रैल, 1858 ई० में समाप्त किया
3.77. 'नेशनल जिम्नेशियम' (National Gymnasium) का गठन कब और किसने किया ?
उत्तर : 'नेशनल जिम्नेशियम (National Gymnasium) का गठन सन् 1868 ई० में नव गोपाल मित्र ने किया।
|नोट : यह एक जिमनास्टिक स्कूल था।
3.78. 'नेशनल जिमनासियम' के प्रमुख सदस्य या छात्र कौन-कौन थे?
उत्तर : 'नेशनल जिमनासियम' के प्रमुख सदस्य या छात्र विपिनचन्द्र पाल, सुन्दरी मोहन दास, राजचन्द्र चौधरी स्वामी विवेकानन्द थे।
13.79. 'आनन्दमठ' उपन्यास का प्रकाशन कब और किस भाषा में हुआ था?
उत्तर : 'आनन्दमठ' उपन्यास का प्रकाशन सन् 1882 ई० में बंगला भाषा में हुआ था।
13.80. 'आनन्दमठ' उपन्यास के पृष्ठभूमि की शुरूआत कब और किसके संदर्भ में हुआ था?
उत्तर : 'आनन्दमठ' उपन्यास के पृष्ठभूमि की शुरूआत सन् 1771 ई० में बंगाल के अकाल के संदर्भ में हुआ था।
|3.81. 'आनन्दमठ' उपन्यास के प्रमुख दो पात्रों के नाम लिखो।
उत्तर : 'आनन्दमठ' उपन्यास के प्रमुख दो पात्रों का नाम महेंद्र' और 'कल्याणी' है।
3.82. कब और किसने 'वर्तमान भारत' को 'रामकृष्ण मठ' और 'रामकृष्ण मिशन' के मुख्य पत्र के रूप में प्रकाशित किया था?
उत्तर : सन् 1899 ई० में "उद्बोधन' प्रकाशन ने 'वर्तमान भारत' को 'रामकृष्ण मठ' और 'रामकृष्ण मिशन' के मुख्य पत्र के रूप में प्रकाशित किया था। [नोट : इस समय 'वर्तमान भारत' एक निबन्ध के रूप में है।]
3.83. गोरा' उपन्यास को कब और किस पत्रिका के माध्यम से क्रमबद्ध रूप दिया गया?
उत्तर : 'गोरा' उपन्यास को 1907 से 1909 ई० के बीच प्रवासी (Prabasi) पत्रिका के माध्यम से क्रमबद्ध रूप दिया गया।
3.84.गगनेंद्रनाथ टैगोर के व्यंग्यात्मक चित्रों से क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर : गगनेन्द्रनाथ टैगोर के व्यंग्यात्मक चित्रों से औपनिवेशिक राजनीति, आमलोगों की जीवन शैली और समाज के उच्च वर्गों के रीति-रिवाजों की जानकारी मिलती है।
13.85. 'इल्बर्ट बिल विवाद' कब और किसने पेश किया?
उत्तर : सन् 1883 ई० में मिस्टर पी० सी० इल्बर्ट ने पेश किया।
3.87. 'भारत सभा' द्वारा किये गये दो महत्वपूर्ण कार्य क्या थे?
उत्तर : दो महत्वपूर्ण कार्य : (1) सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन और (2) इल्बर्ट बिल का विरोध आन्दोलन आदि।
[3.88. हिन्दू मेला की व्यवस्था का दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर : उद्देश्य : (i) हिन्दू मेला की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को एकत्रित कर उनमें राष्ट्रीयता की भावना को भरना था । (ii) भारतीय राष्ट्रीय चेतना को अग्रसर करने तथा राष्ट्रीयता की विकास के लिए इसका गठन किया गया था।
3.89. भारत माता की चित्र से राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति किस प्रकार होती है ?
उत्तर : 'भारत माता' का चित्र : 19वीं शताब्दी में चित्रित इस छात्र ने भारतवर्ष में राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार किया। सन् 1905 ई० में अवनीन्द्रनाथ टैगोर जी ने 'भारत माता' का एक चित्र बनाया जो विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जैसे- 'भारताम्बा (Bharatamba) और 'बंगमाता (Bangmata) आदि। ये चित्र भारतवासियों को जागृत करने के लिए बनाया गया था।
3.90. गगनेन्द्रनाथ टैगोर की दो कार्टून चित्रों का वर्णन करो।
उत्तर : गगनेन्द्रनाथ टैगोर एक महान चित्रकार एवं कार्टूनिस्ट थे। सन् 1917 ई० में 'बाजरा एवं 'अद्भुत औपनिवेशिक समाज का व्यंग्यपूर्ण लोक' तथा सन् 1921 ई० में 'नव हुलोड़े' आदि इनके कार्टून चित्र थे जो चित्रण को दर्शाती थी। इनके चित्रों में जाति प्रथा, पाखण्ड, हिन्दू पुजारी तथा पश्चिमी शिक्षा का घोर विरोध भी छिपा रहता था।
3.91. महारानी की उद्घोषणा से तुम क्या समझते हो?
उत्तर : महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र 1 नवम्बर, 1858 ई० को इलाहाबाद के मिण्टो पार्क में लार्ड कैनिंग के द्वारा घोषित किया गया जिसमें अनेकों बात कहे गये। (a) राज्य हड़प की नीति (Doctrine of Lapse) को समाप्त किया गया। (b) देशी राजाओं और राजकुमारों को अपनी इच्छानुसार अपना उत्तराधिकारी चुनने की छूट दी गयी।(c) जाति, धर्म तथा रंग का भेदभाव किये बिना सरकारी सेवा में नियुक्ति किया जाये इत्यादि।
3.92. 1857 के महा विद्रोह को जन आंदोलन क्यों कहा जाता है ?
उत्तर : 1857 के महा विद्रोह को जन आंदोलन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस विद्रोह में अधिकांशत: भारतीयों ने ही भाग लिया था, जिनमें निम्न वर्ग, मध्य वर्ग और उच्च वर्ग के साथ-साथ कई क्षेत्रों के जमीन्दार और ठेकेदार भी शामिल थे। यह विद्रोह लोगों में अपनी मातृभूमि के प्रति भक्ति की भावना भर दिया था।
3.93. बंग भाषा प्रकाशिका सभा की स्थापना कब और क्यों किया गया?
उत्तर : बंग भाषा प्रकाशिका सभा की स्थापना राजा राममोहन राय के अनुयायियो(Followers) ने किया जिनमें गौरीशंकर तर्कवागीश एवं द्वारकानाथ ठाकुर (टैगोर) आदि प्रमुख थे। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य सरकार के नीतियों की समीक्षा कर उनकी गलतियों को सुधारना था । इस संस्था ने लोगों में राष्ट्रीयता एवं देश-प्रेम की भावना का प्रचार-प्रसार किया।
13.94. जमींदार सभा की स्थापना कब और क्यों किया गया था ?
उत्तर : राजनीतिक सुधारों के लिए राजा राममोहन राय ने जिस आन्दोलन का सूत्रपात किया उसे जारी रखने के लिए बंगाल के जमींदार ने एक संगठन की बात सोची और उसी के आधार पर द्वारका नाथ टैगोर के प्रयासों के फलस्वरूप 1838 में जमींदार सभा का गठन हुआ।
3.95. भारत सभा का गठन कब और किसके द्वारा किया गया था ?
उत्तर : भारत सभा की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस ने सन् 1876 ई० में अल्बर्ट हॉल (Elbert Hall), कलकत्ता में किये। भारत सभा' के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी माने जाते थे, जबकि आनन्द मोहन बोस इसके सचिव माने जाते थे। बाद में इसके अध्यक्ष कलकत्ता के प्रमुख बैरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए। इस संस्था के अन्य संस्थापकों में शिवनाथ शास्त्री तथा द्वारकानाथ गंगोपाध्याय भी थे।
3.96. कब और किसके द्वारा हिन्दू मेला संगठित की गई?
उत्तर : हिन्दू मेला : हिन्दू मेला की स्थापना महान राष्ट्रप्रेमी राज नारायण बोस के प्रमुख शिष्य नव गोपाल मित्र द्वारा सन् 1867 ई० में किया गया । यह मेला प्रत्येक वर्ष के चैत्र महीने में होता था इसीलिए इस मेला को 'चैत्र मेला के नाम से भी जाना जाता था।
विभाग-घ
4.30. रानी की घोषणा पत्र-1858 का ऐतिहासिक महत्व क्या था?
उत्तर : सन् 1857 ई० का विद्रोह भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि इसी विद्रोह के परिणामस्वरूप भारतीय प्रशासनिक मामलों में कई प्रकार के परिवर्तन किये गये और इन परिवर्तनों के आधार पर ही महारानी विक्टोरिया का घोषणा पत्र भी था। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1858 द्वारा किये गये परिवर्तनों की विधिवत घोषणा 1 नवम्बर, 1858 ई० को इलाहाबाद के मिण्टो पार्क में लार्ड कैनिंग के द्वारा किया गया इस घोषणा पत्र में विभिन्न बातें कही गयी जिनमें
(1) भारतीय शासन की बागडोर ईस्ट इण्डिया कंपनी से निकलकर इंग्लैण्ड की सरकार के हाथों में चली गयी, जिसके तहत घोषणापत्र में वायसराय उपाधि का प्रयोग प्रथम बार हुआ। गवर्नर जनरल का पद भारत सरकार के विधायी कार्य का प्रतीक था तथा सम्राट का प्रतिनिधित्व करने के कारण उसे वायसराय कहा गया, अर्थात् भारत के गवर्नर जनरल अब वायसराय बन गए।
(2) विक्टोरिया की घोषणापत्र में कुछ महत्वपूर्ण नीतियों को स्पष्ट किया गया था इसका प्रथम भाग राजाओं से संबंधित था। इसमें उनके क्षोभ को शान्त करने के उद्देश्य से अंग्रेजी राज्य की अपहरण नीति या राज्य हड़प नीति के त्याग की बात कही गई।
(3) भारतीय जनता के लिए धार्मिक सहनशीलता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया। घोषणा में भारतवासियों पर ईसाई धर्म थोपने की इच्छा एवं अधिकार का स्वत्व भी त्याग दिया गया।
(4) घोषणापत्र में कहा गया कि शिक्षा, योग्यता एवं ईमानदारी के आधार पर बिना जाति या वंश का ध्यान रखे लोक सेवाओं में जनता की भर्ती की जाय।
(5) भारतीय परम्परागत अधिकारों, रीतिरिवाजों तथा प्रथाओं के सम्मान का उल्लेख किया गया। भारतीय नागरिकों को उसी कर्त्तव्य एवं सम्मान का आश्वासन दिया गया जो सम्राट के अन्य नागरिकों को प्राप्त थे।
(6) भारत में आन्तरिक शान्ति स्थापित होने के बाद उद्योगों की स्थापना में वृद्धि, लोक-कल्याणकारी योजना, सार्वजनिक कार्य तथा प्रशासन व्यवस्था का संचालन समस्त भारतीय जनता के हित में किये जाने की बात कही गई।
(8) भारतीय सैनिकों की संख्या और यूरोपीय सैनिकों की संख्या का अनुपात विद्रोह के पूर्व 5:1 था जिसे घटाकर 2:1 कर दिया गया। विद्रोह के समय भारतीय सैनिकों की संख्या2 लाख 38 हजार थी जो घटकर 1 लाख 40 हजार हो गई।
4.31. सभा समिति के युग में संगठित बंग भाषा प्रकाशिका सभा एवं जमींदार सभा के उद्देश्य क्या थे? अथवा, 'बंगभाषा प्रकाशिका सभा' तथा 'बंगाल जमींदार सभा' पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर : भारत में 18वीं शताब्दी के अन्त से लेकर 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक कई राजनैतिक समितियों या सभा अथवा संगठन का गठन किया गया जो भारतीय राष्ट्रवाद (Indian Nationalism) के जन्मदाता माने जाते थे। इन समितियों ने ही भारत में राष्ट्रवाद को जन्म दिया अर्थात् बढ़ावा दिया जिसके माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का बीजारोपण किया गया। इन समितियों ने ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें 'बंगभाषा प्रकाशिका सभा' तथा 'बंगाल जमींदार सभा' या 'लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन' आदि महत्वपूर्ण थे।
बंगभाषा प्रकाशिका सभा: 19वीं शताब्दी को ही डॉ० अनिल सेन ने 'समितियों का युग' (Age of Associa tions) के नाम से पुकारा है जिनमें 'बंगभाषा प्रकाशिका सभा प्रथम राजनैतिक समिति थी। इस संगठन की स्थापना सन् 1836 ई० में हुआ था। इसकी स्थापना राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों (Followers) ने किया जिनमें गौरीशंकर तर्कबागीस एवं द्वारकानाथ ठाकुर (टैगोर) आदि प्रमुख थे। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य सरकार की नीतियों की समीक्षा कर उनकी गलतियों को सुधारना था । यद्यपि इसे बंगाल में कोई संवैधानिक महत्व नहीं मिला फिर भी इस संस्था ने बंगालियों को संगठित कर उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रान्ति करने के लिए प्रेरित करती थी। इस संस्था ने लोगों में राष्ट्रीयता एवं देश-प्रेम की भावना का प्रचार-प्रसार किया। इसीलिए इस संस्था की भूमिका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
'बंगाल जमींदार सभा' या 'लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन' : 'बंगाल जमींदार सभा' या लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन भारत में समितियों के युग की दूसरी संस्था थी जिसका गठन सन् 1838 ई० में द्वारकानाथ टैगोर ने कलकत्ता में किया। इतना ही नहीं, इस संस्था के गठन में बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के जमीदार वर्ग की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस संस्था के प्रमुख भारतीय सचिव प्रसन्न कुमार ठाकुर और द्वारकानाथ ठाकुर आदि थे। अंग्रेजी सचिव या नेता में जॉन क्रॉफर्ड, जे० ए० प्रिंसेप, विलियम थी वेल्ड, थियोडर डिकेस तथा विलियम काब्री आदि थे। 'बंगाल जमींदार सभा' का प्रमुख उद्देश्य जमींदारों के हितों की रक्षा करना था। इतना ही नहीं, यह संस्था जमींदार वर्ग को बंगाल में बढ़ावा भी देती थी। यह संस्था आधुनिक भारत की प्रथम संवैधानिक राजनीतिक संस्था' थी।
उपर्युक्त विवरणों से पाते हैं कि 'बंग भाषा प्रकाशिका सभा' एवं 'बंगाल जमींदार सभा' दोनों ही भारतीय राष्ट्रवाद को विस्तृत करने में तत्पर संस्था थी जिसका उद्देश्य भारतीय राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना था।
|4.32. भारत सभा की स्थापना के उद्देश्य एवं इसके कार्य क्या थे?
उत्तर : भारत सभा (Indian Association) : भारत में गुप्त समितियों के रूप में भारत सभा' की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस संस्था की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस द्वारा सन् 1876 ई० में कलकत्ता के इल्बर्ट हॉल (Elbert Hall) में की गई। भारत सभा' के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और आनन्द मोहन बोस इसके सचिव माने जाते हैं। बाद में इसके अध्यक्ष कलकत्ता के प्रमुख बैरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए। इस संस्था के अन्य संस्थापकों में शिवनाथ शास्त्री तथा द्वारकानाथ गंगोपाध्याय भी थे। 'भारत सभा' के निम्नलिखित उद्देश्य थे, जिनमें (1) सम्पूर्ण देश में लोकमत का निर्माण करना, (2) हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता एवं स्त्री को स्थापित करना, (3) सामूहिक आन्दोलनों में किसानों का सहयोग प्राप्त करना, तथा (4) विभिन्न जातियों में एकता के सूत्र को संचार करना एवं उनके सहयोग को प्राप्त करना इत्यादि। इस संस्था ने अनेकों आन्दोलन चलाये जिनमें से कुछ निम्न प्रकार के थे-
(1) सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन : 'भारत सभा' के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने सिविल सर्विस परीक्षा को भारत में आयोजित किये जाने के उद्देश्य से सिविल सर्विस परीक्षा विरोधी आन्दोलन चलाए। जब लार्ड सेल्वरी ने भारतीयों को 'इण्डियन सिविल सर्विस' की परीक्षा से वंचित करने के उद्देश्य से परीक्षा में बैठने की उम्र21 से घटाकर 19 वर्ष कर दिया, तो सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने उम्र 19 से बढ़ाकर 21 करने के लिए आन्दोलन चलाया।
(2) वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट विरोधी आन्दोलन : भारत सभा के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एवं उनके साथियों ने मिलकर वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट विरोधी आन्दोलन चलाया। जब लार्ड लिटन ने सन् 1878 ई० में यह एक्ट लागू कर भारतीय समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया, तब इसके विरोध में 'भारत सभा' ने आन्दोलन चलाया।
4.33. गोरा एवं आनन्दमठ उपन्यासों ने राष्ट्रीयता को जगाने में किस प्रकार सहायक हुआ?
उत्तर : 'गोरा' (Gora) उपन्यास : 'गोरा' उपन्यास एक आकर्षक प्रेम-कथा है जिसमें 'गोरा' एक प्रमुख नायक के तौर पर है और इसी के नाम पर उपन्यास को नाम 'गोरा' शीर्षक के रूप में रखा गया है। 'गोरा'(Gora) का साहित्यिक अर्थ है गौर वर्ण या जाति' का व्यक्ति । इस उपन्यास की रचना महान विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने सन्1909 ई० में किया था । यह उपन्यास उनके द्वारा रचित बारह (12) उपन्यासों में से एक है। यह एक काफी जटिल उपन्यास माना गया है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर जी मूलतः एक कवि थे। उनकी बहुचर्चित काव्यमयी रचना 'गीतांजलि' पर उन्हें 1913 ई० में विश्व का सर्वोच्च नोबेल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। उन्होंने अपनी इस रचना में सामाजिक एवं राजनैतिक रूप, सामाजिक जीवन एवं बुराइयाँ, बंगाली संस्कृति, राष्ट्रीयता की भावना एवं मित्रता आदि को दर्शाया है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने अपने उपन्यास 'गोरा' में भारतवासियों के प्रति राष्ट्रवाद की भावना को दर्शाया है, जो स्वतंत्रता के मार्ग को दिखाती है। उस समय बंगाल लार्ड कर्जन के बंग-भंग क्रिया की काली छाया से होकर गुजर रहा था। ऐसे समय में टैगोर जी की इस उपन्यास ने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया, जो उनके लिए अनमोल था।
'आनन्दमठ' (Anandmath) : भारतीय साहित्यिक कृतियों में सर्वप्रमुख स्थान आनन्दमठ' कृति की है, जिसने भारत में राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता के विकास को जन्म दिया अर्थात राष्ट्र के प्रति हमेशा अग्रसर रहा। इसकी रचना बंकिम चन्द्र चटर्जी ने 1882 ई० में किया। इस कृति को रचना बंगला भाषा में किया गया था। यह एक उपन्यास है, जिसकी पृष्ठभूमि की शुरुआत 1771 ई० के बंगाल के अकाल के समय से होती है। यह अकाल वास्तव में सन् 1770 ई० में आया था, परन्तु इसका संचयन सन् 1771 ई० में किया गया। इस उपन्यास के मुख्य पात्रों में महेन्द्र' और 'कल्याणी' हैं। इतना ही नहीं,18वीं शताब्दी के संन्यासी विद्रोह का वर्णन भी इस उपन्यास में किया गया है तथा भारत का राष्ट्रीय गीत 'वन्देमातरम (Vande Matram) भी सर्वप्रथम इस उपन्यास में ही प्रकाशित किया गया था।
4.34. गगनेन्द्रनाथ टैगोर द्वारा अंकित कार्टून चित्र में किस प्रकार औपनिवेशिक समाज प्रतिविंबित हुआ है?
अथवा, गगनेन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) की चित्रकारी में औपनिवेशिक समाज का व्यंग्यपूर्ण चित्रण है, कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा, महान चित्रकार एवं कार्टूनिस्ट गगनेन्द्रनाथ टैगोर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर : गगनेन्द्रनाथ टैगोर जी एक महान चित्रकार एवं कार्टूनिस्ट थे। इनका जन्म 18 सितम्बर, 1867 ई० को ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रेसिडेन्सी के कलकत्ता में हुआ था ये रवीन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे तथा अवनीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे। इनके पिता का नाम गगनेन्द्रनाथ टैगोर तथा दादा का नाम गिरीन्द्रनाथ टैगोर था। ये एक महान चित्रकार थे। इनकी चित्र दूसरों से हटकर होती थी तथा प्रत्येक चित्रों में औपनिवेशिक समाज का व्यंग्य छिपा होता था उन्होंने उस समय के जाने माने चित्रकार हरिनारायण बंदोपाध्याय से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने चित्रकला एवं कार्टुन से संबंधित अनेकों कार्य किये। जैसे- सन् 1917 ई० में 'बाजरा' एवं 'अद्भुत लोक तथा सन् 1921 ई० में नव हुलोड़े' आदि थे जो औपनिवेशिक समाज के व्यंग्यपूर्ण चित्रण को दर्शाती थी। इनके चित्रों में विभिन्न प्रकार के व्यंग्य छिपे होते थे। जैसे - जाति प्रथा, पाखण्ड, हिन्दू पुजारी तथा पश्चिमी शिक्षा का घोर विरोध भी छिपा रहता था इतना ही नहीं, उस समय के प्रसिद्ध नाटककार ज्योतिन्द्रनाथ टैगोर के नाटक 'एमन कर्म आर करबो ना' में गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हास्यास्पद चित्रों का समावेश मिलता है। उनके नाटक के प्रमुख पात्र अलिफ बाबू तथा 'द फाल्स बाबू' इत्यादि गगनेन्द्रनाथ टैगोर के हाथों की उपज है।
4.35. 19वीं सदी में जिन सभा और समितियों का गठन हुआ था उनकी विशेषताओं का विश्लेषण करो।
उत्तर : भारत में 18वीं शताब्दी के अन्त से लेकर 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक कई राजनैतिक समितियों या सभा का गठन किया गया। इन समितियों ने ही भारत मे राष्ट्रवाद को जन्म दिया अर्थात् बढ़ावा दिया जिसके माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का बीजारोपण किया गया इन समितियों ने हो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां निम्नोक्त समितियों का उल्लेख किया जाता है ।
बंगभाषा प्रकाशिका सभा : 19वीं शताब्दी को ही डॉ० अनिल सेन ने समितियों का युग' (Age of Associa tions) के नाम से पुकारा है जिनमें 'बंगभाषा प्रकाशिका सभा' प्रथम राजनैतिक समिति था। इस संगठन की स्थापना सन् 1839 ई० में हुआ था। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य सरकार की नीतियों की समीक्षा कर उनकी गलतियों को सुधारना था। इस संस्था ने लोगों में राष्ट्रीयता एवं देश-प्रेम की भावना का प्रचार-प्रसार किया। इसीलिए इस संस्था की भूमिका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
'बंगाल जमींदार सभा' या 'लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन' : 'बंगाल जमींदार सभा' या "लैण्ड होल्डर्स एसोसिएशन' भारत में समितियों के युग की दूसरी संस्था थी जिसका गठन सन् 1838 ई० में द्वारकानाथ टैगोर ने कलकत्ता में किया। इतना ही नहीं, इस संस्था के गठन में बंगाल, बिहार एवं उडीसा के जमीदार वर्ग की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती थी। बंगाल जमींदार सभा का प्रमुख उद्देश्य जमीदारों के हितों की रक्षा करना था। इतना ही नहीं, वे जमींदार वर्ग को बंगाल में बढ़ावा भी देती थी। यह संस्था आधुनिक भारत की प्रथम संवैधानिक राजनीतिक संस्था' थी।
भारत सभा (Indian Association): भारत में गुप्त समितियों के रूप में 'भारत सभा' की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस संस्था की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा आनन्द मोहन बोस ने सन् 1876 ई० में अल्बर्ट हॉल (Elbert Hall), कलकत्ता में किये। 'भारत सभा' के संस्थापक सुरेन्द्रनाथ बनर्जी माने जात हैं जबकि आनन्द मोहन बोस के सचिव थे। बाद में इसके अध्यक्ष कलकत्ता के प्रमुख बैरिस्टर मनमोहन घोष चुने गए। इस सस्था के अन्य संस्थापकों में शिवनाथ शास्त्री तथा द्वारकानाथ गंगोपाध्याय भी थे।
हिन्दू मेला (Hindu Mela): भारतीय राष्ट्रीय चेतना को अग्रसर करने तथा राष्ट्रीयता की विकास के लिए इस संस्था का गठन किया गया था। यह एक संस्था नहीं था बल्कि एक मेला था, जो चैत्र महीने में होता था। इसके आयोजन का मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को एकत्रित कर उनमें राष्ट्रीयता की भावना को भरना था। 'हिन्दू मेला' की स्थापना महान राष्ट्रप्रेमी राज नारायण बोस' के प्रमुख शिष्य 'नव गोपाल मित्र' ने सन् 1867 ई० में किया। यह मेला प्रत्येक वर्ष के चैत्र महीने में होता था, इसीलिए इस मेला को चैत्र मेला के नाम से भी जाना जाता था चूंकि यह मेला राष्ट्रीय स्तर पर होता था, इसीलिए इस मेला को राष्ट्रीय मेला' के नाम से भी जाना जाता था।
| 4.36. सन् 1857 ई० के विद्रोह को सैनिक विद्रोह भी कहते हैं, वर्णन करें।
उत्तर : सन् 1857 ई० के विद्रोह को सैनिक विद्रोह भी कहा जाता है. क्योंकि विभिन्न इतिहासकारों का मानना है कि यह विद्रोह सैनिकों के द्वारा ही शुरू किया गया था। इसीलिए इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह भी कहा जाता है। हालाँकि इस विद्रोह के अनेकों रूप माने गये हैं परन्तु इसका यह रूप सबसे प्रभावी माना जाता है। 1857 ई० के विद्रोह का प्रारम्भ मेरठ से माना जाता है, जिसकी शुरूआत 10 मई, 1857 ई० में हुआ। इस विद्रोह में अनेकों नेताओं ने अपनी भूमिका निभाया। जैसे - बहादुर शाह जफर, नाना साहेब, तात्या टोपे, बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, लियाकत अली, कुंवर सिंह, खान बहादुर खाँ, मौलवी अहमद उल्ला अजीमुल्ला तथा मंगल पाण्डे आदि। इन्होंने अपने देश की आजादी के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिये। ये लोग देश के अनमोल खजाने थे, जो देश के लिए नष्ट हो गये।
सर जॉन लारेन्स और सीले जैसे अंग्रेजी विद्वानों ने इप विद्रोह को सैनिक विद्रोह' कहा है, क्योंकि अंग्रेजी सेनाओं में अधिकतर भारतीय सैनिक ही थे। अंग्रेजी हुकूमत सेनाओं के बीच भेद-भाव करते थे। यही भावना धीरे-धीरे आग की तरह फैलती गयी जिसके कारण बैरकपुर छावनी में नई तकनीकि से बना हुआ कारतूस आया तो सैनिकों में यह अफवाह फैल गयी कि कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिलाया गया है। अतः, जो भारतीय सैनिक थे, वे इस कारतूस को मुंह में लेने से साफ मना कर दिये क्योंकि उनके धर्म पर इसका प्रभाव पडता। उन भारतीय सैनिकों में एक मंगल पाण्डे था, जिसने पहली बार इस कारतूस को मुँह से काटने से साफ मना कर दिया। अंग्रेज उनको पकड़कर 8 मई, 1857 ई० को फांसी पर लटका दिये। यह खबरफैलते ही न केवल बैरकपुर छावनी में बल्कि समस्त उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में यह विद्रोह शुरू हो गया। पी० ई० रॉबर्टस भी इसे विशुद्ध सैनिक विद्रोह मानते थे। वी० ए०यने लिखा है कि, "यह एक शुद्ध रूप से सैनिक विद्रोह था, जो संयुक्त रूप से भारतीय सैनिकों की अनुशासनहीनता एवं अंग्रेज सैनिक अधिकारियों को मूर्खता का परिणाम था।" सुरेन्द्रनाथ सेन ने अपनी पुस्तक 'एटीन फिफ्टो सेवन'1857 में लिखा है, "आन्दोलन
एक सैनिक विद्रोह की भाँति आरम्भ हुआ, किन्तु केवल सेना तक सीमित नहीं रहा। सेना ने भी पूरी तरह विद्रोह में भाग नहीं लिया।" डॉ० आर० सी० मजुमदार ने इसे 'सैनिक विश्व' बताया। इस प्रकार हम देख पाते हैं कि 'चर्बी वाला कारतूस की घटना ही वास्तविक रूप सैनिक विद्रोह को जन्म दिया है।
इसीलिए इस विद्रोह को 'सैनिक विद्रोह' भी कहा जाता है।
4.37. 'वर्तमान भारत' में स्वामी विवेकानन्द ने किस प्रकार तत्कालीन भारत का वर्णन किया है ?
उत्तर : भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में वर्तमान भारत' की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । 'वर्तमान भारत' में स्वामी विवेकानन्द ने तत्कालीन भारत का वर्णन किया है। विवेकानंद जी ने 'वर्तमान भारत' नामक कृति की रचना सन्1905 ई० में किये। आरम्भ में यह एक प्रकार का निबन्ध था, जिसको सन्1899 ई० में उद्बोधन प्रकाशन ने 'रामकृष्ण मठ' एवं 'रामकृष्ण मिशन के मुखपत्र के रूप में प्रकाशित किया । बाद में स्वामी विवेकानन्द जी ने इस निबंध को पुस्तक का रूप दिया।
इस पुस्तक में स्वामी विवेकानन्द जी ने तत्कालीन भारत के निम्न जाति एवं गरीबों की दयनीय एवं मार्मिक जीवन का वर्णन किया है। इतना ही नहीं, उन्होंने जातिवाद पर अपना कठोर विचार व्यक्त किये हैं कि इस देश की जातिवाद रूपी डिम्बक ने इसे खोखला बना दिया है। इसीलिए तत्कालीन भारत के लोगों से वे जातिवाद को समाप्त कर भाईचारें को अपनाने का अपील किये है।
अत: देखा जाय तो स्वामी विवेकानन्द जी ने अपनी रचना 'वर्तमान भारत' में तत्कालीन भारत का इस रूप में वर्णन किया। जिसमें निम्न जातियों की विभिन्न समस्या एवं जातिवाद को दर्शाया गया है।
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