CLASS 10 History Chapter-2 सुधार, विशेषताएँ एवं निरीक्षण|NOTES
सुधार, विशेषताएँ एवं निरीक्षण
ATR Institute
West Bengal Board of Secondary Education (WBBSE)
Notes for:-
CLASS 10th (MADHYAMIK)
HISTORY
CHAPTER-2
सुधार, विशेषताएँ एवं निरीक्षण भाग | ख
CLASS 10th (MADHYAMIK) HISTORYबंगाल तकनीकी संस्थान की स्थापना किस वर्ष हुई थी ?
उत्तर : सन् 1906 ई० में ।
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की ?
उत्तर : राजा राममोहन रॉय।
लीला नाग (राय) किस संस्था से जुड़ी थी?
उत्तर : लीला नाग 'दिपाली संघ संस्था से जुड़ी थी जिसकी स्थापना उन्होंने ही 1923 ई० में ढाका में की थी।
हिन्दू पैट्रियट पत्रिका का सम्पादन कार्य कब और किसके नेतृत्व में आरम्भ हुआ था?
उत्तर :1853 ई० में मधुसूदन राय, श्री नाथ घोष, गिरीश चंद्र घोष के नेतृत्व में ।
एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना किसने और कब किया?
उत्तर : सर विलियम जोन्स ने, 1784 ई० में।
विजय कृष्ण गोस्वामी कौन थे?
उत्तर : विजय कृष्ण गोस्वामी बंगाल के धर्म एवं समाज सुधारकों में से एक थे।
लालन फकीर कौन थे?
उत्तर : लालन फकीर बंगाली बाउल संत, फकीर, गीतकार, समाज सुधारक तथा चिंतक थे।
"सती" प्रथा को किसने और कब अवैध घोषित किया?
उत्तर : राजा राममोहन रॉय राय के प्रयास से ब्रिटिश सरकार ने, 1829 ई० में किया?
समाचार चंद्रिका का प्रकाशन किसने किया?
उत्तर : समाचार चंद्रिका का प्रकाशन भवानी चरण बंद्योपाध्याय ने किया।
विधवा पुनर्विवाह कानून को किसने और कब पास करवाया?
उत्तर : ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा, 13 जुलाई 1856 ई० में।
हाजी मुहम्मद मोहसीन कौन थे?
उत्तर : हाजी मुहम्मद मोहसीन बंगाल के फराजी आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने और कब किया?
उत्तर :-स्वामी विवेकानंद ने 1897 ई० में।
'शब्द कल्पना' किसने प्रकाशित किया?
उत्तर :राजा राजा राधाकांत देब ने।
कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी।
उत्तर : 24 जनवरी 1857 ई० में।
आदी ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की?
उत्तर:- देवेन्द्रनाथ टैगोर ने।
कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रथम उप कुलपति कौन थे ?
उत्तर: सर जेम्मा पिलियम कॉलवाइल Sir James William Colvile कलकत्ता विश्व विद्यालय के प्रथम उप कुलपति थे।
नव विधान ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की ?
उत्तर: नव विधान ब्रह्म समाज को स्थापना केशवचन्द्र सेन मे की। |
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:1887 ई. में।
हिन्दू कॉलेज की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर : 1817ई में ।
बेथून स्कूल की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर : 1849 ई में ।
बोस संस्थान की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर : 1917 ई में।
हुतोम प्यानचार नक्शा के लेखक कौन है ?
उत्तर-काली प्रसन्न सिन्हा।
राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर-1934 में।
वुइस डिस्पैच कब और किसने प्रकाशित किया?
उत्तर- सन् 1854 ई. में चार्ल्स वुड ने।
हंटर आयोग का गठन किसने किया?
उत्तर-विलियम हण्टर ने।
देरोजियो कौन थे?
उत्तर: देरोजियो हिन्दू कालेज के अध्यापक एवं यंग या तरुण बंगाल के संस्थापक थे।
भारत की प्रथम महिला डॉक्टर (चिकित्सक) कौन थी ?
उतर :आनंदी गोपाल जोशी।
'दादन' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर : अग्रिम राशि।
पश्चिम बंगाल का कौन-सा क्षेत्र जंगल महल के नाम से जाना जाता है?
उत्तर : पश्चिम मिदनापुर।
सुधार, विशेषताएँ एवं निरीक्षण भाग ग
CLASS 10th (MADHYAMIK) HISTORY"यंग बंगाल सोसाइटी' के रूप में कौन जाने जाते थे?
उत्तर : डेरोजियों के नेतृत्व में 'यंग बंगाल' (Young Bengal) नामक संस्था का गठन हुआ और इनके अनुयायी 'युवा बंगाल' कहलाए। इनके द्वारा चलाया गया आन्दोलन 'यंग बंगाल आन्दोलन' (Young Bengal Movement) कहलाया। नव बंगाल के सदस्यों द्वारा न सिर्फ जाति-पति, मूर्ति-पूजा, सती प्रथा, स्त्रियों की उपेक्षा तथा छुआूत की निन्दा की जाती थी, बल्कि हिन्दू धर्म का भी विरोध किया जाता था।
ब्रह्म समाज के किन्हीं दो समाज सुधार क्रियाकलापों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : ब्रह्म समाज का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त एकेश्वरवाद का सिद्धान्त था ब्रह्म समाजी एक ब्रह्म अथवा ईश्वर को मानते थे और केवल उसकी उपासना में ही विश्वास रखते थे। ब्रह्म समाज के अनुयायी मूर्ति पूजा एवं अन्य वाह्य आडबरो के विरोधी थे । वे प्रार्थना में विश्वास करते थे, उनकी प्रार्थना प्रेम तथा सत्य पर आधारित थी।
देरोजियो क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर : देरोजियो हिन्दू कॉलेज के प्राध्यापक एवं यंग बंगाल के संस्थापक थे उन्होंने धर्म के क्षेत्र में फैले आहम्बर, अंध विश्वास तथा पुरोहितवाद का विरोध किया तथा हिन्दू समाज की कुरीतियों को समाप्त कर, नारी शिक्षा एवं नारी अधिकारों की मांग की।
'मनेर मानुष' नामक पुस्तक की रचना किसने और किसके बारे में की?
उत्तर : सुनील गंगोपाध्याय ने 'मनेर मानुष' नामक पुस्तक की रचना की। यह पुस्तक ललन फकरी, बाऊल संगीत सम्राट की जीवनी है।
मधुसूदन गुप्ता क्यों स्मरणीय है ?
उत्तर : पं० मधुसूदन गुप्ता का जन्म 1800 ई० में हुगली जिला के वैद्यवाटि नामक स्थान में हुआ था । वही प्रथम भारतीय थे जिन्होंने सबसे पहले पाश्चात्य मेडिसिन के अनुसार किसी मानव शव का विच्छेदन (चीड़-फाड) किया था।
हरीश चन्द्र मुखोपाध्याय को क्यों याद किया जाता है ?
उत्तर : हरीश चन्द्र मुखोपाध्याय इसलिए याद किये जाते है कि सिपाही विद्रोह के समय हिन्दू पैट्रियट पत्रिका जिसका प्रकाशन मधुसूदन राय के स्वामित्व तथा गिरीश घोष के सम्पादन में हुआ था, के माध्यम से इन्होंने नील की खेती करने वाले कृषकों के ऊपर हो रहे अत्याचार को देश के सामने उजागर करने में अहम भूमिका पालन किया था।
नील दर्पण' (NIL Darpan) किसका नाटक है और इसकी विषय-वस्तु क्या है?
उत्तर : नील दर्द (NIL Darpan) दीनबंधु मित्र का नाटक है तथा इसमें किसानो पर नीलहे गोरो द्वारा किये गये अत्याचार को दिखाया गया है।
कंगल हरीनाथ का नाम क्या स्मरणीय है?
उत्तर: कंगल हरीनाथ को एक समाज सुधारक के रूप में याद किया जाता है। इनका वास्तविक नाम हरीनाथ मजूमदार है इनके ग्रामवर्ता पत्रिका का सर्वप्रथम प्रकाशन हुआ। माना जाता है कि इस पत्रिका के प्रकाशन के लिए उन्हें दूसरों से अर्थिक मदद मांगनी पड़ी थी, कंगाल हरीनाथ के नाम से शहूर है।
मैकाले संस्तुति क्या था ?
उतर मैकाले नें2फरवरी, 1635 ई० के अपने इतिहास प्रसिद्ध प्रतिवेदन में अंग्रेजी भाषा, साहित्य एवं ज्ञान-विज्ञान के पक्ष में अपना निर्णय दिया। नि:संदेह लॉर्ड मैकाले के शिक्षा सम्बन्धी विचार अत्यधिक पक्षपातपूर्ण और संकीर्ण दृष्टिकोण के परिचायक थे। वस्तुत: अंग्रेजी भाषा और साहित्य के माध्यम से वह ऐसे भारतीय उत्प्न कामा चाहता था। जो रक्त और रंग से भारतीय हो किंतु बुद्धि, चरित्र, विचारधारा एवं रहन सहन से अंग्रेज ।
बुड्स डिस्पैच क्या है?
उत्तर : चार्ल्स वुड जो 1054 ईo में बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष थे,भारतीय शिक्षा सबध में एक विस्तृत योजना प्रस्तुत किये । इसे ही बुस डेस कहा जाता है।
CLASS 10th (MADHYAMIK) HISTORY
विजय कृष्ण गोस्वामी कौन थे?
उत्तर : विजय कृष्ण गोस्वामी बंगाल के एक धर्म एव समाज सुधारक थे। इन्हें चैतन्य महाप्रभु का अवतार भी कहा जाता था। यह वैष्णोवाद के प्रवर्तक माने जाते थे। इसका जन्म 2 अगस्त, 1551 ई० को नदिया जिले के शांतिपूर् नामक स्थान में हुआ था।
हण्टर आयोग का गठन क्यों हुआ?
उत्तर : 18 विलियम हंटर की आपकाता में एक आयोग का गठन किया गया। इस आयोग का उद्देश्य केवल प्राथमिक शिक्षा के विकास की कार्य समीक्षा प्रस्तुत कर सुझाव देना था, परंतु इसने माध्यमिक शिक्षा के लिए कई सुझाव दिए थे।
नव्य बंग आंदोलन क्या था?
उत्तर: 19 वी शताब्दी के पूर्व में बंगाल के नवयुवकों ने अनेक सामाजिक मान्यताओ, कुरीतियों, कुसवारी के विरुद्ध एक आन्दोलन चलाया ! यह दल नव बंगाल या तरुण बंगाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
नव्य वेदांत क्या है ?
उतर 19वीं सदी में हिन्दू धर्म की विशेषताओं को नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा था जिसे नव्य वेदांत कहते है।
प्राच्यवादी किन्हें कहा जाता ?
उत्तर : लोक शिक्षा को सामान्य समिति में 10 दस सदस्य शामिल होकर दो दल बनाया गया। दूसरा दल हो प्याी আहलाा जो ब्रिटिश भाषा की वकालत करते थे ।
राधाकांत देव कौन थे?
उत्तर. राधाकान्त देव उन्नीसवीं सदी के समाज सुधारक में से एक थे दिनाने ओजी शिक्षा का समर्थन किया थाा मारी शिक्षा कारागार में माल गोगदान दिया था।
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना के दो उद्देश्य बताइए ।
उत्तर :- 1) इस कॉलेज के साथ एक वृहद अस्पताल की भी स्थापना की गई थी जिसमें हजारो मरीजों का इलाज रियायती दर पर करी जाती थी।
2) कोलकाता मेडिकल कॉलेज भारत में पहली ऐसी संस्था थी जो पूरी तरह पाश्चात्य शिक्षा चिकित्सा शिनकाशानदेन के लिए स्थापित की गई थी।
सुधार, विशेषताएँ एवं निरीक्षण भाग घ
CLASS 10th (MADHYAMIK) HISTORY4.8. पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में राजा राममोहन रॉय की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर :
पाश्चात्य शिक्षा के विकास में राजा राममोहन रॉय की भूमिका : भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार भारत के आधुनिक पुरुष राजा राममोहन रॉय की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। राजा राममोहन रॉय अरबी, फारसो, संस्कृत, अंग्रेजी, लैटिन, यूनानी, हिब्रू इत्यादि भाषाओं के ज्ञाता थे । ये पश्चिम के आधुनिक देशों के उदारवादी बुद्धिवादी सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे । वे हिन्दू शिक्षा को यूरोपिय शिक्षा के वैज्ञानिक आदर्श पर संगठित करना चाहते इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भूगोल, ज्योति। शास्त्र, ज्यामिती और व्याकरण आदि विषयों पर बंगला में पाठ्य पुस्तक लिखी। उन्होंने सन् 1817 ई० में पाश्चात्य शिक्षा को अपना समर्थन देने के लिए डेविड हेयर की सहायता से कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की जो अब प्रेसीडेंसी कॉलेज के नाम से जाना जाता है इस प्रकार उन्होंने आधुनिक भारत में पाश्चात्य शिक्षा की नींव रखी, इसलिए इन्हें भारत का आधुनिक पुरुष कहा जाता है राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजी शिक्षा को बहुत आगे बढ़ाया तथा इसे बंगाल का एक प्रमुख अंग बनाय।
14.9. नारी शिक्षा के विस्तार में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की भूमिका का संक्षेप में चर्चा करो।
उत्तर :
नारी शिक्षा के क्षेत्र में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की भूमिका : ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का जन्म सन् 1820 ई० में हुआ था। वे पश्चिमी शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया करते थे। हालांकि वे संस्कृत के विद्वान थे। उन्होंने अपने जीवन में स्त्री शिक्षा पर अधिक बल दिया। उन्होंने 1849 ई० में 'Hindu Female School की स्थापना की जो अब बेथून कॉलेज के नाम से जाना जाता है। इस कार्य में 'Drinkwater Bethune' नामक व्यक्ति ने उनका साथ दिया । वे'Female Juvenile Society नामक संस्था से भी जुड़े हुए थे। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के विस्तार के लिए"श्री शिक्षा सम्मिलिनी" नामक संस्था मिदनापुर, हुगली, बर्दमान आदि जगहों पर स्थापित की जिसमें पारम्परिक हिन्दूओं तन-मन-धन से साथ दिया। ये सभी विद्यालय उनके द्वारा गाँवों में स्थापित किया गया था। सन् 1870 ई० में जर्ज कैम्पबेल इनमें से कुछ विद्यालयों को जो उपनगर में थे बन्द करने की कोशिश भी की। हालांकि उसकी इस योजना का पढे-लिखे बंगालियों ने विरोध भी किया। इसके बाद विद्यासागर ने कैम्पबेल को जवाब देने के लिए अपने पैसे से कलकत्ता में 'Metropolitan Institution' की स्थापना की। विद्यासागर ने पश्चिमी शिक्षा पर जोड़ दिया साथ ही उन्होंने मातृभाषा को पढ़ाने पर भी जोर दिया।
4.10. नव्य बंगाल आंदोलन में डिरोजियो के अवदान का अभिमूल्यन करो । अथवा, हेनरी लुई विवियन डेरोजियो पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर : हेनरी लुई विवियन डेरोजियो बंगाल के एक महान समाज सुधारक थे जिन्होंने अपने माध्यम से बंगाल में कम समय मही ब्रिटिश विरोधी क्रांति को जन्म दिया था। उन्होंने भारतीय समाज में फैले बुराईयों, कुरूतियों तथा बाहा-आडम्बरों को नष्ट करने व ने का आह्वान किये। हेनरी डेरोजियो पुर्तगाली पिता तथा भारत माता के सन्तान थे भारतीयता उनमें कूट-कूट कर भरी उनका जन्म सन् 1809 ई० में हुआ था। 1823 ई० में शिक्षा समाप्त कर वे भागलपुर के कोठी में क्लर्क बन गये।1827 में कलकत्ता लौट आये तथा पत्रकारिता और साहित्य रचना में रूचि लेने लगे। उन्होंने 'इण्डिया गजट','कलकत्ता लिटरेट गजट' तथा 'बंगाल एनुअल' जैसे कई पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन में भाग लिये । सन 1828 ई० में देरोजियों ने 'फकीर ऑफ जंघोरा' (Fakir of Janghira) नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना किये। देरोजियों के नेतृत्व में 'यंग बंगाल' (Young Bengal) नामक संस्था का गठन हुआ आर इनके अनुयाई युवा बंगाल कहलाए। इनके द्वारा चलाया गया आन्दोलन 'यंग बंगाल आन्दोलन' (Young Bengal Movement) लाया। नव बंगाल' के सदस्यों में कुछ इतने उग्र विचारों वाले थे जो जाति-पाँत, मूर्ति-पूजा, सती-प्रधा, स्त्रियों उपेक्षा तथा छुआछूत की निन्दा ही नही करते थे, बल्कि हिन्दू धर्म का भी विरोध करते थे। सन् 1831 ई० देरोजियों के आकस्मिक मृत्यु के बाद इनके शिष्य कृष्ण मोहन बनर्जी, राम गोपाल घोष, महेश चन्द्र घोष एवं दक्षिणारंजन मुखर्जी आदि ने युवा बंगाल (Young Bengal) को आगे बढ़ाए।
4.11. भारत में पाश्चात्य शिक्षा के संप्रसारण का वर्णन करो।
उत्तर : अंग्रेजी शिक्षा : मैकॉले की शिक्षा पद्धति विप्रवेशन सिद्धान्त या अधोमुखी निस्यन्दन सिद्धांत पर आधारित था। इस सिद्धान्त में माना जाता है कि यदि उच्च वर्ग के कुछ लोगों को शिक्षित कर दिया जाए तो वे मध्यम वर्ग के और अधिक लोगों को शिक्षित करेगे एवं फिर ये शिक्षित लोग निम्न वर्ग के काफी लोगों को शिक्षित करेंगे। परन्तु भारत में यह प्रयास पूर्णत: सफल नहीं हो सका । भारत में अंग्रेजी शिक्षा के विकास का दूसरा चरण लॉर्ड डलहौजी के कार्यकाल में शुरू हुआ। इसके पूर्व 1835 ई० में लोक शिक्षा समिति 20 विद्यालयों को चला रही थी। 1837 ई० में इनकी संख्या बढकर 48 हो गई। लार्ड ऑकलैण्ड ने बंगाल को भागों में विभक्त किया और प्राय: प्रत्येक जिले में विद्यालय स्थापित किए। 1840 ई० तक इस प्रकार के 40 विद्यालय थे। 1835 ई० में कलकता मेडिकल कॉलेज की नीव लार्ड विलियम बेंटिक के समय में पड़ी। 1854 में लार्ड डलहौजी ने 33 प्राथमिक विद्यालय की स्थापना की। 1851 ई० मे पूना संस्कृत कॉलेज और अंग्रेजी स्कूल को मिलाकर पूना कॉलेज बनाया गया। 1854 ई० में बम्बई में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। 1852 ई० में सेंट जान्स कॉलेज की स्थापना की गई। इस योजना के तहत भारत में अंग्रेजी भाषा के माध्यम से उच्च शिक्षा दिए जाने पर बल दिया गया साथ ही साथ देशी भाषा के विकास को महत्व दिया गया। लंदन विश्वविद्यालय के आधार पर कलकता, बम्बई एवं मद्रास में तीन विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। इस घोषणा में तकनीकी एवं व्यावसायिक विश्वविद्यालय की स्थापना पर भी बल दिया गया।
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4.12. भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में दोष एवं त्रुटियाँ क्या थे?
उत्तर : 1813 ई० के चार्टर में इस बात की व्यवस्था की गई थी कि भारत में शिक्षा पर कम्पनी1 लाख रुपये वार्षिक खर्च करे, लेकिन 20 वर्ष तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया 1833 ई० में चार्टर में एक बार फिर संसद ने कम्पनी को यह निर्देश दिया कि वह एक लाख रुपये वार्षिक की रकम भारत में शिक्षा पर खर्च करे । अब कम्पनी इस निर्देश की अवहेलना करने की स्थिति में नहीं थी। इसी चार्टर के मद्देनजर एक समिति का निर्माण किया गया, जो लोक शिक्षा की सामान्य समिति के नाम से जानी जाती है । इस समिति में 10 सदस्य शामिल थे, जिसमें सपरिषद् गवर्नर जनरल भी शामिल था। इस समिति के गठन के साथ ही भारत में विचारधारा के आधार पर इस समिति के 10 सदस्यों में दो दल बन गए थे। एक दल भारतीय शिक्षा पद्धति' और भारतीय भाषाओं की वकालत कर रहा था, जबकि दूसरा दल बिटिश भाषा की वकालत कर रहा था । पहला दल प्राच्यवादी के नाम से जाना जाता है । इस विचारधारा के समर्थक एच० टी० प्रिंसेप एवं एच० एच० विल्सन थे । इन्होंने हिन्दुओं एवं मुस्लिमों के पुराने साहित्य के पुनरुत्थान को अधिक महत्व दिया । दूसरा दल आंग्लवादी के नाम से जाने जाते थे । इस पाश्चात्य या आंग्ल शिक्षा के समर्थकों का नेतृत्व मुनरो एवं एल्फिस्टन ने किया, जिसका समर्थन मैकाले ने भी किया। मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा की वकालत करते हुए 1835 ई० में एक पत्र जारी किया जो मैकाले स्मरण पत्र के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी शिक्षा के समर्थन में शिक्षित भारतीयों का एक वर्ग भी सामने आया जिसका नेतृत्व राजा राममोहन रॉय कर रहे थे । अन्ततः वायसराय लॉर्ड विलियम बेंटिक ने एक प्रस्ताव के द्वारा मैकाले के दृष्टिकोण को अपना लिया । इस प्रकार प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा के बीच उत्पन्न गतिरोध समाप्त हो गया तथा अंग्रेजी भाषा भारतीयों के लिए शिक्षा व्यवस्था का आधार बना।
14.13. 19वीं सदी में साहित्य एवं समाचार-पत्रों ने समाज को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर : साहित्य : भारतीय साहित्यिक कृतियों में सर्वप्रमुख स्थान 'आनन्द मठ' कृति की है, जिसने भारत में राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता के विकास को जन्म दिया अर्थात राष्ट्र के प्रति हमेशा अग्रसर रहा। इसकी रचना बंकिम चन्द्र चटजी वा चट्टोपाध्याय ने 1882 ई० में किया। इस कृति की रचना बंगला भाषा में किया गया था इतना ही नहीं, 18वीं शताब्दा संन्यासी विद्रोह का वर्णन भी इस उपन्यास में किया गया है तथा भारत का राष्ट्रीय गीत 'वन्देमातरम'(Vande Matram/ भी सर्वप्रथम इस उपन्यास में ही प्रकाशित किया गया था। भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में 'वर्तमान भारत' की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 19वीं सदी में भारतीय लोगों को जागृत करने तथा उनमें देश-प्रेम और देश-भक्ति को जगाने में 'वर्तमान भारत' ने अहम भूमिका निभाई। इस अनम कृति की रचना स्वामी विवेकानन्द जी ने सन् 1905 ई० में किया। इस पुस्तक का उद्देश्य भारत में राष्ट्रीयता का सच यानि विकास करना तथा देशवासियों के भीतर देशप्रेम और देश-भक्ति की भावना को जागृत करना था।
समाचार-पत्र : आधुनिक भारत के इतिहास को विश्लेषित करने में तत्कालीन समाचार-पत्र एवं पत्रिकायें काफी मददगार साबित होते हैं। 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारत में बहुत बड़े पैमाने पर समाचार-पत्रों का प्रकाशन हुआ से हमें इतिहास के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती है। इस काल के कुछ प्रमुख समाचार पत्र है टाइम्स ऑफ इण्डिया, स्टेट्समैन, मद्रास मेल, पायनियर, सिविल एण्ड मिलेटरी गजट (सभी अंग्रेजी); अमृत बाजार पत्रिका, बंगवासी, सोमप्रकाश, बंगदर्शन (सभी बंगाल); केसरी मराठी कवि वचन सुधा, प्रदीप, हरिजन, उदन्त मार्तदण्ड हिन्दी); अल हिलाल, अल बिलाल, हमदर्द (उर्दू) एवं गदर (पंजाबी) इत्यादि।
414. 19वीं सदी में बंगाल के सामाजिक जीवन में हिन्दू पैट्रियट एवं ग्रामवार्ता प्रकाशिका के अवदानों की समीक्षा करो।
उत्तर : हिन्दू पैट्रियाट : हरिशचन्द्र मुखर्जी के सम्पादन में हिन्दू पैट्रियट साम्राज्यवादी अन्याय के खिलाफ विद्रोह का मुख्यमंत्री बन गया। 19वीं शताब्दी के उत्तर्राद्ध में इसने नील की खेती करने वाले किसानों के ऊपर नीलहे साहबों के द्वारा किए गए अत्याचारों को सबके सामने उजागर किया।1875 ई० में जब 'जगदनंदा मुखर्जी' नामक एक अमीर बंगाली ने प्रिंस ऑफ वेल्स को अपने निवास पर आमंत्रित किया तब हिन्दू पैट्रियॉट ने छापा कि इससे राष्ट्रवादी हितों का अपमान हुआ है । कृष्ण दास पाल के सम्पादन में हिन्दू पैट्रियट ने प्रवासी विधेयक, स्वदेशी पत्र कानून और इल्बर्ट बिल इत्यादि विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। कृष्णदास पाल ने प्रवासी विधेयक का विरोध किया तथा इस विधेयक के माध्यम से चाय के बगानों में कार्य करने वाले श्रमिकों के ऊपर होने वाले अत्याचार को अन्चित बताया तथा इस पत्र ने प्रवासी विधेयक को भारत का गुलाम कानून कहा।
ग्राम वार्ता प्रकाशिका : 19वीं शताब्दी में प्रकाशित यह समाचार पत्र काफी महत्वपूर्ण था। इसका प्रथम प्रकाशन अप्रैल 1863 ई० में हुआ। इसके संपादक हरिनाथ मजुमदार थे । जून जुलाई 1864 तक यह द्विसाप्ताहिक एवं अप्रैल मई 1871 में साप्ताहिक पत्र हो गया था। आरंभ में यह समाचार-पत्र कलकत्ता के गिरिश विधाराना प्रेस में छपता था । 1864 ई० में यह समाचार पत्र कुमारखाली के माथुरनाथ प्रेस से छपने लगा। 1873 ई० में कुमारखाली प्रेस माथुरनाथ मोइत्रा के द्वारा और नाथ जी को दान दे दिया गया। इस पत्र में मुख्य रूप से साहित्य, दर्शन एवं विज्ञान के लेख छपते थे । प्रसिद्ध बंगाली विद्वान इस पत्र में अपने लेख लिखते थे । रवीन्द्रनाथ टैगोर के दर्शन, विज्ञान एवं साहित्य के लेख एवं उनकी कविताएँ इस पत्र में छपी थी । प्रसिद्ध मुस्लिम लेखक मीर मोशर्रफ हुसैन तथा प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार जलधर सेन ने अपने साहित्यिक जीवन का आरम्भ इसी पत्र में काम करके किया था
हरिनाथ जी ने 18 वर्षों तक इस पत्र का संपादन किया तथा सामाजिक कुरीतियों एवं राजनीतिक खामियों को उजागर किया । इस पत्र के द्वारा जबरन नील की खेती करने वाले अंग्रेजों पर उन्होंने जोरदार प्रहार किया था।
4.15. नारी शिक्षा के प्रसार में राजा राममोहन रॉय एवं विद्यासागर के अवदानों की समीक्षा करो।
उत्तर :
राजा राममोहन रॉय : राजा राममोहन रॉय को भारत का आधुनिक पुरुष कहा जाता है। राजा राममोहन राय अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, लैटिन, यूनानी, हिब्रू इत्यादि भाषाओं के ज्ञाता थे । ये पश्चिम के आधुनिक देशो केउदारवादी, बुद्धिवादी, सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे । वे हिन्दू शिक्षा को यूरोपिय शिक्षा के वैज्ञानिक आदर्श पर संगठित करना चाहते थे । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भूगोल या ज्योतिष शास्त्र, ज्यमिती और व्याकरण आदि विषयों पर बंगला में पाठ्य पुस्तकें लिखीं । उन्होंने सन् 1817 ई० में पाश्चात शिक्षा को अपना समर्थन देने के लिए डेविड हेयर की सहायता से कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की । इस प्रकार उन्होंने आधुनिक भारत में पाश्चात्य शिक्षा का नीव रखा। इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी देन थी स्त्रियों के प्रति होने वाले अत्याचारों से मुक्ति का संग्राम क्योंकि उन्हें सम्पत्ति का अधिकार नहीं था, शिक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं था। पति के शव के साथ स्त्रियों को दिया जाता या। अत:,1819 ई० में उन्होंने महिलाओं की मुक्ति का आंदोलन छेड़ दिया। उनकी चेष्टा थी महिलाओं को सम्पत्ति अधिकार में, शिक्षा का अधिकार मिले और इस दिशा में अपना महत्वपूर्ण अवदान प्रस्तुत किया।
विद्यासागर : विद्यासागर के जीवन का संकल्प था शिक्षा सुधार, शिक्षा का प्रचार, तथा स्त्रियों के लिए हर प्रकार की सामाजिक स्वतंत्रता। स्त्री शिक्षा के प्रचार के लिए उन्होंने अत्याधिक कार्य किए। उन्होंने अनुभव किया था कि शिक्षा के बिना स्त्रियों दशा में सुधार नही हो सकता । हिन्दू बलिका विद्यालय की स्थापना के लिए उन्होंने बेथून साहब की सहायता से बेथून कॉलेज की स्थापना की। बंगालियों के सामाजिक इतिहास में इसका काफी महत्व है। शिक्षा निदेशक के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने बंगाल में अनेक बालिका विद्यालयों की स्थापना की। उन्होंने देशी शिक्षा के प्रसार के लिए सरकार को अधिकाधिक देशी विद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया। शिक्षा जगत में धार्मिक संर्कीणता को दूर कर के लिए संस्कृत कॉलेज में गैर-ब्राह्मण छात्रों को पढ़ने का अवसर दिया। बच्चों को आसानी से बंगला सीखने के लिए उन्होंने वर्ण परिचय, लघु सिद्धान्त कौमुदी, बोधोदय, कथा माला आदि पुस्तकों की रचना की। शिक्षा प्रसार तथा नारी उत्थान में विद्यासागर का योगदान अविस्मरणीय है।
19वीं सदी के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में रामकृष्ण परमहंस देव द्वारा पालन की गई भूमिका का उल्लेख करो।
उत्तर : रामकृष्ण परमहंस की भूमिका: भारतीय संस्कृति तथा आध्यात्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए भी श्री रामकृष्ण परमहंस सभी धर्मों की सत्यता पर विश्वास करते थे। सब प्रकार की धार्मिक साधनाओं में वे उसी ईश्वर को पाते थे जिसके तरफ सभी कदम बढ़ा रहे हैं। यद्यपि सबके मार्ग अलग-अलग हैं। एक मुसलमान सूफी से उन्होंने मुस्लिम साधना की दीक्षा ली और ईसाई पादरी से पढ़वा कर बाइबल सुनते रहे। वे सिक्ख गुरूओं को आदर की दृष्टि से देखते रहे और समाधि की अवस्था में माँ काली तथा कृष्ण के अतिरिक्त ईसामसीह और बुद्ध के भी दर्शन करते रहे। रामकृष्ण काली के अनन्य उपासक थे। वे गुरू भक्त थे। वे हिन्दू धर्म के रक्षक थे। यद्यपि उन्हें अंग्रेजी शिक्षा नहीं मिली, तथापि वे नवीन पश्चिमी विचारों से अवगत थे। वे ईसाई और इस्लाम धर्म से भी प्रभावित थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों मं ब्याई है, ईश्वर एक है। अत: आदमी को चाहिए कि वह जिस धर्म में पैदा हुआ है उसी को माने। रामकृष्ण विश्वजनोन धर्म के समर्थक थे। वे सुलह-ए-कुल के पक्षधर थे। यही कारण है कि उनके शिष्य विभिन्न धर्मों के अनुयायी थे । उनके शिष्य उन्हें ईश्वर तुल्य समझते थे। रामकृष्ण को न तो संस्कृत और न ही अंग्रेजी का ज्ञान था, वे बंगला के भी पंडित नहीं थे किन्तु वे सभी से अच्छी तरह बात-चीत कर लेते थे। उनकी यह उक्ति पाहम, नाहमः तू ही, तू ही अत्यंत ही प्रसिद्ध है जो उनके धार्मिक उपदेश का सार है। इसका सरल अर्थ है, वे (परमहंस) कुछ नहीं हैं। वे कोई औपचारिक गुरू थे, वे कहते थे, मैं किसी का भी गुरू नहीं हूँ। मैं हर आदमी का शागिर्द हूँ।"15 मार्च 1866 ई० को रामकृष्ण परमहंस जो का देहांत हो गया। उनके लिए मानव-सेवा ही ईश्वर सेवा था । रामकृष्ण परमहंस के महान व्यक्तित्व तथा सरल और आदर्शपूर्ण जीवन का लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। उनके उपदेशों से लोगों में धार्मिक कट्टरता तथा सामाजिक रूढ़ियों के प्रति रुचि उत्पन्न तथा साम्प्रदायिक भावना का ह्रास हुआ। इनके इन्हीं सिद्धान्तों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए उनके शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने अथक प्रयत्न किया।
4.17. 19 वीं सदी में शिक्षा के प्रसार में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के अवदानों की समीक्षा करो।
उत्तर : कलकत्ता मेडिकल कॉलेज : इस कॉलेज की स्थापना 1835 ई० में बंगाल के कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) शहर में हुआ था । यह एशिया में यूरोपीय चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान देने वाला दूसरा संस्थान था एवं अंग्रेजी भाषा के माध्यम से ज्ञान देने वाली पहली संस्थान थी इस कॉलेज के साथ एक वृहद अस्पताल को भी स्थापना की गई थी जिसमें हजारों मरीजों की दवा रियायती दर पर की जाती थी । इस विद्यालय द्वारा चिकित्सा विज्ञान के प्रशिक्षण के परचात विद्यार्थियों को चिकित्सा में स्नातक की उपाधि दी जाती थी। इसके अलावा इस संस्थान से उपाधियाँ देने की भी व्यवस्था थी । इसके अलावा नर्सिंग एवं पैरा मेडिकल की पढाई की भी व्यवस्था थी। "मेडिकल कॉलेज, कलकत्ता भारत में पहली ऐसी संस्था थी जो पूरी तरह से पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान देती थी। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी पहा सहायक डॉक्टरों की कमी को ध्यान में रखकर भारतीयों को यूरोपीय चिकित्सा का ज्ञान कराना आरंभ किया। भारतीय डॉक्टर यूरोपीय डॉक्टरों की सहायता के लिए होते थे। इससे कम्पनी पर व्यय कम पडता था । यूरोपीय चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन कर भारतीय भी चिकित्सा विज्ञान में काफी आगे बढ़।
CLASS 10th (MADHYAMIK) HISTORY
हरिनाथ जी ने 18 वर्षों तक इस पत्र का संपादन किया तथा सामाजिक कुरीतियों एवं राजनीतिक खामियों को उजागर किया । इस पत्र के द्वारा जबरन नील की खेती करने वाले अंग्रेजों पर उन्होंने जोरदार प्रहार किया था।
4.15. नारी शिक्षा के प्रसार में राजा राममोहन रॉय एवं विद्यासागर के अवदानों की समीक्षा करो।
उत्तर :
राजा राममोहन रॉय : राजा राममोहन रॉय को भारत का आधुनिक पुरुष कहा जाता है। राजा राममोहन राय अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, लैटिन, यूनानी, हिब्रू इत्यादि भाषाओं के ज्ञाता थे । ये पश्चिम के आधुनिक देशो केउदारवादी, बुद्धिवादी, सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे । वे हिन्दू शिक्षा को यूरोपिय शिक्षा के वैज्ञानिक आदर्श पर संगठित करना चाहते थे । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भूगोल या ज्योतिष शास्त्र, ज्यमिती और व्याकरण आदि विषयों पर बंगला में पाठ्य पुस्तकें लिखीं । उन्होंने सन् 1817 ई० में पाश्चात शिक्षा को अपना समर्थन देने के लिए डेविड हेयर की सहायता से कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की । इस प्रकार उन्होंने आधुनिक भारत में पाश्चात्य शिक्षा का नीव रखा। इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी देन थी स्त्रियों के प्रति होने वाले अत्याचारों से मुक्ति का संग्राम क्योंकि उन्हें सम्पत्ति का अधिकार नहीं था, शिक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं था। पति के शव के साथ स्त्रियों को दिया जाता या। अत:,1819 ई० में उन्होंने महिलाओं की मुक्ति का आंदोलन छेड़ दिया। उनकी चेष्टा थी महिलाओं को सम्पत्ति अधिकार में, शिक्षा का अधिकार मिले और इस दिशा में अपना महत्वपूर्ण अवदान प्रस्तुत किया।
विद्यासागर : विद्यासागर के जीवन का संकल्प था शिक्षा सुधार, शिक्षा का प्रचार, तथा स्त्रियों के लिए हर प्रकार की सामाजिक स्वतंत्रता। स्त्री शिक्षा के प्रचार के लिए उन्होंने अत्याधिक कार्य किए। उन्होंने अनुभव किया था कि शिक्षा के बिना स्त्रियों दशा में सुधार नही हो सकता । हिन्दू बलिका विद्यालय की स्थापना के लिए उन्होंने बेथून साहब की सहायता से बेथून कॉलेज की स्थापना की। बंगालियों के सामाजिक इतिहास में इसका काफी महत्व है। शिक्षा निदेशक के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने बंगाल में अनेक बालिका विद्यालयों की स्थापना की। उन्होंने देशी शिक्षा के प्रसार के लिए सरकार को अधिकाधिक देशी विद्यालयों की स्थापना का सुझाव दिया। शिक्षा जगत में धार्मिक संर्कीणता को दूर कर के लिए संस्कृत कॉलेज में गैर-ब्राह्मण छात्रों को पढ़ने का अवसर दिया। बच्चों को आसानी से बंगला सीखने के लिए उन्होंने वर्ण परिचय, लघु सिद्धान्त कौमुदी, बोधोदय, कथा माला आदि पुस्तकों की रचना की। शिक्षा प्रसार तथा नारी उत्थान में विद्यासागर का योगदान अविस्मरणीय है।
19वीं सदी के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में रामकृष्ण परमहंस देव द्वारा पालन की गई भूमिका का उल्लेख करो।
उत्तर : रामकृष्ण परमहंस की भूमिका: भारतीय संस्कृति तथा आध्यात्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हुए भी श्री रामकृष्ण परमहंस सभी धर्मों की सत्यता पर विश्वास करते थे। सब प्रकार की धार्मिक साधनाओं में वे उसी ईश्वर को पाते थे जिसके तरफ सभी कदम बढ़ा रहे हैं। यद्यपि सबके मार्ग अलग-अलग हैं। एक मुसलमान सूफी से उन्होंने मुस्लिम साधना की दीक्षा ली और ईसाई पादरी से पढ़वा कर बाइबल सुनते रहे। वे सिक्ख गुरूओं को आदर की दृष्टि से देखते रहे और समाधि की अवस्था में माँ काली तथा कृष्ण के अतिरिक्त ईसामसीह और बुद्ध के भी दर्शन करते रहे। रामकृष्ण काली के अनन्य उपासक थे। वे गुरू भक्त थे। वे हिन्दू धर्म के रक्षक थे। यद्यपि उन्हें अंग्रेजी शिक्षा नहीं मिली, तथापि वे नवीन पश्चिमी विचारों से अवगत थे। वे ईसाई और इस्लाम धर्म से भी प्रभावित थे। उनका मानना था कि सभी धर्मों मं ब्याई है, ईश्वर एक है। अत: आदमी को चाहिए कि वह जिस धर्म में पैदा हुआ है उसी को माने। रामकृष्ण विश्वजनोन धर्म के समर्थक थे। वे सुलह-ए-कुल के पक्षधर थे। यही कारण है कि उनके शिष्य विभिन्न धर्मों के अनुयायी थे । उनके शिष्य उन्हें ईश्वर तुल्य समझते थे। रामकृष्ण को न तो संस्कृत और न ही अंग्रेजी का ज्ञान था, वे बंगला के भी पंडित नहीं थे किन्तु वे सभी से अच्छी तरह बात-चीत कर लेते थे। उनकी यह उक्ति पाहम, नाहमः तू ही, तू ही अत्यंत ही प्रसिद्ध है जो उनके धार्मिक उपदेश का सार है। इसका सरल अर्थ है, वे (परमहंस) कुछ नहीं हैं। वे कोई औपचारिक गुरू थे, वे कहते थे, मैं किसी का भी गुरू नहीं हूँ। मैं हर आदमी का शागिर्द हूँ।"15 मार्च 1866 ई० को रामकृष्ण परमहंस जो का देहांत हो गया। उनके लिए मानव-सेवा ही ईश्वर सेवा था । रामकृष्ण परमहंस के महान व्यक्तित्व तथा सरल और आदर्शपूर्ण जीवन का लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। उनके उपदेशों से लोगों में धार्मिक कट्टरता तथा सामाजिक रूढ़ियों के प्रति रुचि उत्पन्न तथा साम्प्रदायिक भावना का ह्रास हुआ। इनके इन्हीं सिद्धान्तों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए उनके शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने अथक प्रयत्न किया।
4.17. 19 वीं सदी में शिक्षा के प्रसार में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के अवदानों की समीक्षा करो।
उत्तर : कलकत्ता मेडिकल कॉलेज : इस कॉलेज की स्थापना 1835 ई० में बंगाल के कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) शहर में हुआ था । यह एशिया में यूरोपीय चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान देने वाला दूसरा संस्थान था एवं अंग्रेजी भाषा के माध्यम से ज्ञान देने वाली पहली संस्थान थी इस कॉलेज के साथ एक वृहद अस्पताल को भी स्थापना की गई थी जिसमें हजारों मरीजों की दवा रियायती दर पर की जाती थी । इस विद्यालय द्वारा चिकित्सा विज्ञान के प्रशिक्षण के परचात विद्यार्थियों को चिकित्सा में स्नातक की उपाधि दी जाती थी। इसके अलावा इस संस्थान से उपाधियाँ देने की भी व्यवस्था थी । इसके अलावा नर्सिंग एवं पैरा मेडिकल की पढाई की भी व्यवस्था थी। "मेडिकल कॉलेज, कलकत्ता भारत में पहली ऐसी संस्था थी जो पूरी तरह से पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान देती थी। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी पहा सहायक डॉक्टरों की कमी को ध्यान में रखकर भारतीयों को यूरोपीय चिकित्सा का ज्ञान कराना आरंभ किया। भारतीय डॉक्टर यूरोपीय डॉक्टरों की सहायता के लिए होते थे। इससे कम्पनी पर व्यय कम पडता था । यूरोपीय चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन कर भारतीय भी चिकित्सा विज्ञान में काफी आगे बढ़।
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काली प्रसन्नता सिन्हा द्वारा लिखित हुतोम प्यानचार नक्शा में कलकत्ता के किस समाज की अवस्था का वर्णन किया गया है?
उत्तर: व्यंग्यात्मक साहित्य में हुतोम प्यानचार की भूमिका :-हुतोम प्यानचार नक्शा या उल्लू का नक्शा ksha of the owl) काली प्रसन्नता सिंहा (Kali Prasanna Singha) के द्वारा लिखा गया व्यंग्यात्मक गद्य साहित्य यह पुस्तक 140 पृष्ठों को है। इस पुस्तक में उस समय के समाज में व्याप्त धार्मिक आडम्बरयुक्त त्योहार, প हितवाद, बाबू (Babus) एवं साहेब (Saheb) जैसी परम्पराओं का वर्णन किया गया है और उसका मजाक उड़ाया है। हतोम प्यानचार नक्शा में उस समय की चलित भाषा' Running language) अर्थात् बोल-चाल की भाषा का भी प्रयोग बहुतायत देखने को मिलता है।
तोम प्यानचार नक्शा उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाल के गद्य साहित्यों में सबसे अधिक लोकप्रिय पुस्तक है। परवर्ती नेक ने काफी संख्या में इस पुस्तक का अनुकरण किया। नक्शा का तात्पर्य इस पुस्तक में व्यंग्यात्मक चत्रों को शब्द का रूप देने से है। कालीप्रसन्न सिंहा ने उस के समाज में व्याप्त अराजकता तथा बंगाली समाज में पाश्चात्य संस्कृति के आगमन के पश्चात् के बदलाव को शब्दों में पिरोने का कार्य किया है।
4.19. पाश्चात्य शिक्षा के विकास में राजा राममोहन राय की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर : पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में राजा राममोहन रॉय राय का योगदान :- भारत में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में भारत के आधुनिक पुरुष राजा राममोहन राय एवं राजा राधाकान्त देव की भूमिका काफी महत्वपूर्ण थी। राजा राममोहन राय अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, लैटिन, यूनानी, हिब्रू इत्यादि भाषाओ के ज्ञाता थे। ये पश्चिम के आधुनिक देशों के उदारवादी, बुद्धिवादी सिद्धान्तों से बहुत प्रभावित थे। वे हिन्दू शिक्षा कोयूरोपीय शिक्षा के वैज्ञानिक आदर्श पर संगठित करना चाहते थे इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने भूगोल, ज्योतिष शास्त्र, ज्योमिति और व्याकरण आदि विषयों पर बंगला में पाठ्य पुस्तकें लिखीं। उन्होने सन् 1817 ई० में पाश्चात्य शिक्षा को अपना समर्थन देने के लिए डेविड हेयर की सहायता से कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज (Hindu College) की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने आधुनिक भारत में पाश्चात्य शिक्षा की नींव रखी इसलिए उन्हें भारत का आधुनिक पुरुष Modem Man of India) कहा जाता है।
4.20. "नील दर्पण' नमक नाटक में व्यक्त नील की खेती करने वाले किसानों की व्यथा को अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर : 'नील दर्पण' में व्यक्त नीलहे किसानों की दशा :- नील दर्पण (Nil Darpan) दीनबंधु मित्र के द्वारा बंगला भाषा में लिखा गया एक नाटक है। इसकी रचना 1858-1859 ई० में हुई। इस पुस्तक में नील विद्रोह (Indigo Revolt) की फरवरी-मार्च 1859 ई० की घटना का वर्णन है, जब बंगाल में किसानों ने बिटिश सरकार की शोषण की नीति के विरुद्ध अपने खेतों में नील की खेती करना अस्वीकार कर दिया था। इस पुस्तक में नील की खेती करने वाले किसानों पर नीलहे साहबों के द्वारा किए गए अत्याचारों का इतनी सजीवता से वर्णन किया गया है कि यह लोगों के मन को उद्वेलित कर देता है। माइकेल मधुसूदन दत्त ने कालीप्रसन्न सिहा तथा गिरीशचन्द्र घोष के प्रोत्साहन पर इस पुस्तक का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तथा जेम्स लॉग नामक एक अग्रेज আधिकारी ने इसका प्रकाशन करवाया इस पुस्तक ने ब्रिटेन में खलबली मचा दी। इस पुस्तक में उल्लेखित नील हे साहबों द्वारा किसानों के ऊपर किए गए अत्याचारों के बारे में पढ़कर अंग्रेजों की रूह भी काँप गई। जेम्स लॉग पर मुकदमा क चलाया गया। जगह-जगह 'नील दर्पण' नाटक का मंचन किया गया एवं आम जनता को अंग्रेजों के अत्याचारी से अवगत कराया गया। इसी पुस्तक के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार 1860 ई० में नील आयोग (Indigo Commis अ) का गठन किया। इस कमीशन ने किसानों के पक्ष में अपनी रिपोर्ट दिया। अन्त में ब्रिटिश सरकार ने रेगूलेशन Regulation VIl) पारित किया जिसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि नीलहे साहब किसानों को नील की खेती करने के लिए बाध्य नहीं करेंगे। इस प्रकार, इस पुस्तक ने किसानों के उद्धारकर्ता के रूप में कार्य किया।
4,21. नील दर्पण पर किसानों की स्थिति दर्शाओ।
उत्तर: नील दर्पण बंगाली नाटककार दीनबंधु मित्र द्वारा रचित एक नाटक है । इनका जन्म1829 ई० में उत्तर 24 परगना के चौबेरिया नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम कलाचंद मित्र था। नील दर्पण नाटक नील की खेती करने वाले किसानों की दुर्दशा को दर्शाता था । अंग्रेज निलहे जमींदार जबरन किसानों से नील की खेती करवाते थे एवं बदले में बहुत कर पारिश्रमिक देते थे । जब किसानों ने नील की खेती करने से इन्कार कर दिया तब अंग्रेजी व्यापारियों ने उन पर अमानवीय जुल्म ढाना आरंभ कर दिया था। किसानों एवं उनके परिवार वालों पर नृशंस अत्याचार किए जाते थे। आये दिन निलहे साहबों के कर्मचारी लाठी-डण्डों से दुर्बल किसानों और उनके स्वजनों पर टूट पड़ते और उनकी जम कर पिटाई करते । इस नाटक के द्वारा दीनबंधु मित्र ने किसानों की दशा का इतना मार्मिक एवं सजीव चित्रण किया है कि उसे देख कर सारा देश उग्र हो उठा। मधुसूदन दत्त ने इस नाटक का अंग्रेजी भाषा में रूपांतरण किया था इसे देखकर अंग्रेजों के दिल भी दहल उठे थे।
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4.22. विजय कृष्ण गोस्वामी पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर :विजय कृष्ण गोस्वामी बंगाल के एक प्रमुख धर्म सुधारक एवं समाज सुधारक थे। इन्हें चैतन्य महाप्रभु का अवतार कहा जाता था। ये वैष्णवाद सिद्धान्त के प्रवर्तक माने जाते थे। इनका जन्म2 अगस्त, 1841 ई० को नदिया जिले के शांतिपुर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम आनन्द किशोर गोस्वामी था, जो एक महान भक्त थे। देवेन्द्रनाथ टैगोर से प्रभावित होकर इन्होंने 'ब्रह्म समाज' की सदस्यता स्वीकार किया था। उन्होंने भारत भ्रमण कर ब्रह्म समाज के सिद्धान्तों का प्रचार भी किया था। परम सत्य की खोज में उन्होंने 'ब्रह्मानन्द परमहंस' को अपना गुरू बनाया और परम सत्य की प्राप्ति के लिए लोगों में प्रचार प्रसार करने लगे। विजय कृष्ण गोस्वामी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा शान्तिपुर के गोविन्द स्वामी से ली बाद में 1859 में वे कोलकाता आए और संस्कृत कॉलेज में भर्ती हो गये। इन्होंने औषधियों का भी गहरा अध्ययन किया वे1863 में पूर्वी बंगाल में आये तथा केशवचन्द्र सेन के साथ कुछ समय के लिए ढाका में काम किया। उन्होंने शान्तिपुर एवं मैमनसिंह में ब्रह्म मन्दिरों की स्थापना की। नारी शिक्षा के विकास में उनकी विशेष रूचि थी। उन्होंने जगन्नाथ पुरी धाम में अपने शरीर को त्याग दिया। उनकी समाधि आज भी 'जातीय बाबर आश्रम के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनकी मृत्यु सन् 1899 ई० में हआ था। इन्होंने 'श्री श्री सद्गुरू असंग (Sri-Sri Sadguru Sangh) नामक पुस्तक भी लिखे।
>>Click here for History CHAPTER 3 NOTES
Sir all subjects notes update please I want
जवाब देंहटाएंVery NCC गीत के रचयिता कौन है? Nice.
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