Class 10 WBBSE Notes
Madhyamik
History Chapter 5
5. वैकल्पिक विचार एवं प्रयास (19 वीं शताब्दी के मध्य से 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक)
विभाग-ख
| 2.1.94. बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना किसने किया था ?
उत्तर : जोनाथन डंकन ने ।
2.1.95. 'बंगाल गजट' नामक समाचार-पत्र का पहला प्रकाशन कब हुआ?
उत्तर : 1780 ई० में।
2.1.96. 'बंगाल तकनीकी संस्थान' (Bengal Technical Institute) की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर : सन् 1906 ई० में ।
2.1.97. भारतीय समाचार पत्र अधिनियम (Vernacular Press Act) कब पारित किया गया था?
उत्तर : सन् 1878 ई० में ।
12.1.98. बंगाल में प्रथम 'अंध विद्यालय' कब खोला गया ?
उत्तर : बंगाल में प्रथम अंध विद्यालय' सन् 1925 ई० में खोला गया।
12.1.99. चन्द्रशेखर वेंकटरमन को अन्य किस नाम से भी जाना जाता था?
उत्तर : रमन प्रभाव (Raman Effect) के नाम से ।
2.1.100. 'ए नेशन इन मेकिंग' (A Nation in Making) के रचनाकार कौन थे ?
उत्तर : सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ।
विभाग-ग
| 3.97. तारकनाथ पालित का नाम क्यों स्मरणीय है ?
उत्तर : राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल ने स्वदेशी औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए बेंगाल टेक्नीकल इन्स्टीट्यूट (BIT) की स्थापना किया। इसकी स्थापना के लिए श्री तारकनाथ पालित ने 10 लाख रुपए तथा अपर सर्कुलर रोड स्थित अपने आवास को भी दान कर दिया । बंगाल की तकनीकी शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए तारक नाथ पालित स्मरणीय है।
[3.98. कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना के दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर : (i) उच्च शिक्षा का प्रसार एवं भारतीय को अंग्रेजी शिक्षा से शिक्षित करने के उद्देश्य से कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई । (ii) इसकी स्थापना लंदन विश्वविद्यालय के स्तर पर हुई थी जिसमें 41 सदस्यों की एक कमिटि बनाकर नीति निर्धारण का उद्देश्य रखा गया।
13.99. राष्ट्रीय शिक्षा परिषद क्या था ?
उत्तर : राष्ट्रीय शिक्षा परिषद या नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन की स्थापना 1906 ई० में की गई । इसका मुख्य उद्देश्य स्कूलों में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना था । पराधीन भारत में नेशनल काउन्सिल ऑफ एड्केशन एक ऐसी संस्था थी जो राष्ट्रीय नियंत्रण के आधार पर छात्रों में ऐसी वैज्ञानिक एवं तकनकी शिक्षा का प्रसार करना चाहती थी, जो अंग्रेजी आधुनिक शिक्षा व्यवस्था को चुनौती दे सके।
13.100. प्रिंटिंग प्रेस का आदि युग किस काल को कहा जाता है ?
उत्तर : 18वीं सदी के अंतिम समय को ही प्रिंटिंग प्रेस का आदि युग कहा जा सकता है क्योंकि उसी दौरान बंगाल में मुद्रण उद्योग स्थापित होने लगे।
13.101. 'स्कूल बुक सोसाइटी' (School Book Society) की स्थापना कब और किसने किया?
उत्तर : 'स्कूल बुक सोसाइटी' (School Book Society) की स्थापना सन् 1817 ई० में डेविड हेयर ने किया।
13.102. रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा के संबंध में क्या विचार था ?
उत्तर : रवीन्द्रनाथ टैगोर का शिक्षा के संबंध में कहना था कि "सर्वोच्च शिक्षा वही है जो सम्पूर्ण सृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती है।'
[3.103. आधुनिक अक्षर निर्माण कला (Block Making)' का निर्माण किसने किया तथा इसके साथ ही उन्होंने क्या शुरू किये ?
उत्तर : 'आधुनिक अक्षर निर्माण कला (Block Making)' का निर्माण उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी ने किया तथा इसके साथ ही उन्होंने 'रंगीन ब्लॉक मेकिंग' (Colour Block Making) की भी शुरूआत किये।
13.104. 'प्रकाशन घर' के नाम से क्या जाना जाता था? गणितीय विश्लेषण तथा वैज्ञानिक तरीकों से छाया-प्रति (Negative making) का निर्माण किसने किया?
उत्तर : 'प्रकाशन घर' के नाम से यू० एन० रॉय एण्ड सन्स (U.N. Roy and Sons) नामक प्रेस जाना जाता था। गणितीय विश्लेषण तथा वैज्ञानिक तरीकों से छाया-प्रति (Negative making) का निर्माण उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी के पुत्र कुमार राय ने किया।
13.105. हिन्दू कॉलेज की स्थापना किस उद्देश्य से हुई थी?
उत्तर : हिन्दू कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं तथा यूरोप और एशिया के साहित्य एवं विज्ञान की शिक्षा देना था।
3-106. इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइन्स की स्थापना क्यों की गई?
उत्तर : भौतिक, रसायन, जीव विज्ञान, ऊर्जा बहुलक तथा पदार्थों के सीमावर्ती क्षेत्रों में मौलिक शोध कार्य के लिए सन् 1876 ई० में इसे स्थापित की गई।
3.107.) आशुतोष मुखर्जी क्यों प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर : श्री आशुतोष मुखर्जी एक प्रसिद्ध वकील, कलकत्ता विश्वविद्यालय के उप-कुलपति और प्रसिद्ध विद्वान थे। शिक्षा के क्षेत्र में आशुतोष मुखर्जी का बहुत बड़ा योगदान है ।
13.108. 'द बंगाल गजट' के शीघ्र बाद किन पत्रों का प्रकाशन हुआ ?
उत्तर : कलकत्ता गजट (1784), बंगाल जनरल (1785), कलकत्ता क्रॉनिकल (1786) एवं द एशियाटिक मिरर आदि पत्रों का प्रकाशन हुआ।
3.109. किस काल को बंगाल का नव जागरण काल कहा जाता है ?
उत्तर : राजा राममोहन राय (1774-1833) से प्रारम्भ होकर रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941) तक के काल को बंगाल का नवजागरण काल कहा जाता है।
13.110.श्रीरामपुर मिशन प्रेस की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर : सन् 1800 ई० में विलियम कैरी तथा विलियम वार्ड ने किया।
3.111.बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना क्यों किया गया?
उत्तर : विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के प्रसार के लिए इस कॉलेज की स्थापना की गई।
3.112. श्रीरामपुर ट्रियो के नाम से किन्हें जाना जाता था ?
उत्तर : श्रीरामपुर ट्रियो (Serampore trio) 18 वीं शताब्दी में भारत में उपस्थित तीन ब्रिटिश मिशनरियों को कहा जाता था जो है विलियम कैरी, जोसुआ मार्शमैन, विलियम वार्ड। इन्होने कई संस्कृत के पुस्तकों का अनुवाद किया तथा कई कॉलेजों की स्थापना की।
13.113. उपेन्द्र किशोर रॉय चौधरी कौन थे?
उत्तर : उपेन्द्र किशोर रॉय चौधरी बंगाल के प्रमुख साहित्यकार, चित्रकार एवं तकनीशियन थे। इन्होंने आधुनिक अक्षर कला का निर्माण किया था।
3.114. एन. बी. हेलहेड क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर : एन. बी. हेलहेड ने हिन्दू धर्म शास्त्रों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कर A Code of Gentoo Laws के नाम से प्रकाशित किया था।
13.115. प्रिंटिंग प्रेस के विकास का काल किस समय को कहा जाता है?
उत्तर : 19वीं सदी के वृद्धि समय को प्रिंटिंग प्रेस के विकास का काल माना जाता है जब विलियन कैरी तथा कुछ और अंग्रेजों ने हुगली के श्रीरामपुर में श्रीरामपुर मिशन प्रेस' की स्थापना किया था ।
3.116.] प्रिंटिंग प्रेस के विकास का आधुनिक युग किस काल को कहा जाता है ?
उत्तर : 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध तथा 20वीं सदी के पूर्वार्ध से प्रिंटिंग प्रेस के विकास का आधुनिक युग माना जाता है जब एक के बाद एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना होने लगी।
3.117. औपनिवेशिक शिक्षा नीति क्या था ?
उत्तर : भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रसार करने में ब्रिटिश सरकार के अतिरिक्त ईसाई धर्म प्रचारकों और प्रबुद्ध भारतीयों की प्रमुख भूमिका रही। किन्तु भारतीयों को शिक्षित करने के पीछे उनका उद्देश्य एक ऐसा वर्ग तैयार करना था जो अंग्रजों के सहायक की भूमिका अदा कर सकें । गवर्नर जनरल की कौसिल के सदस्य मैकाले ने अपने महत्वपूर्ण आलेख-पत्र द्वारा अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया था।
3.118 औपनिवेशिक शिक्षा नीति के प्रति रवीन्द्रनाथ का मत क्या था?
उत्तर : राष्ट्रीय शिक्षा की आवश्यकता, उसके स्वरूप एवं लक्ष्य आदि पर बोलते हुए रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा, "भारत में विदेशियों द्वारा शिक्षा का नियंत्रण और निर्देशन सबसे अधिक अस्वाभाविक घटना है । स्वयं अपने प्रणासां और साधनों के द्वारा सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए देश की आवश्यकताओं को पूरा करना ही भारत में राष्ट्रीय शिक्षा का उद्देश्य और लक्ष्य हो।"
3.119. रवीन्द्रनाथ टैगोर का शांतिनिकेतन के प्रति धारणा क्या था ?
उत्तर : 'शांति निकेतन' की स्थापना रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर ने सन् 1863 ई० मे किये थे । रवीन्द्रनाथ टैगोर को 'शांति निकेतन' आश्रम से बड़ा ही लगाव था । वे वहाँ अक्सर जाया करते थे । उनको वहाँ का वातावरण बड़ा ही मनमोहक लगता था । इसी कारण रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने वहाँ अर्थात् 'शांति निकेतन में सन 1901 ई० में पाँच छात्रों को लेकर एक आश्रम या विद्यालय खोले थे। उनका मानना था कि शांति निकेतन शांति का घर है जहाँ लोग मन की एकाग्रता पाते हैं।
13.1.20. शिक्षा में मनुष्य एवं परिवेश के शामिल होने के प्रति रवीन्द्र नाथ टैगोर का मत क्या था ?
उत्तर : रवीन्द्रनाथ टैगोर खुद 'प्रकृति' को महान शिक्षक की दर्जा दिया है, जो हमेशा जीवित रहता है अर्थात महान शिक्षक होने के साथ-साथ, एक जीवित शिक्षक भी। 'प्रकृति' के साथ रहकर अबोध बच्चे या बालक या बालिका जीवन के हर एक रहस्य को सीख पाते हैं । टैगोर जी का मानना है कि समाज में पठन पाठन का केन्द्र या विद्यालय खुले प्राकृतिक वातावरण में हो ताकि बच्चे खुले प्राकृतिक वातावरण में पढ़कर विकसित हो पायेंगे।
3.121. 'गोरा' उपन्यास की रचना कब और किसके द्वारा की गई? उत्तर : गोरा उपन्यास की रचना रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1909 ई० में की गई थी।
13.122. 'भारत माता' का अर्थ क्या है ?
उत्तर : भारतमाता अवनीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा बनाई गई एक अनमोल कलाकृति है । इस कलाकृति ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना को बहुत ही प्रखर किया था । स्वतंत्रता आंदोलन के समय यह कलाकृति लोगों के लिए एक आदर्श बन गई थी।
13.123. प्रिंटिंग प्रेस का जनक किसे कहा जाता है।
उत्तर : उपेन्द्र किशोर रॉय चौधुरी को प्रिंटिंग प्रेस का जनक कहा जाता है । इनके द्वारा U.N. Roy and Sons मुद्रणालय की स्थापना की गई थी, जो दक्षिण एशिया का पहला मुद्रणालय या प्रेस था, जहां से काले एवं सफेद (Black and White) तथा रंगीन (Colourful) फोटोग्राफ्स मुद्रित होते थे।
|3124. पंचानन कर्मकार कौन थे?
उत्तर : मुद्रण कला में बगला अक्षर (हरफ) के जनक का नाम पंचानन कर्मकार था । इनका जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के त्रिवेणी में हुआ था । कोलकाता में जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना हुई तब इन्होंने उसके प्रेस में कार्य किया था । बंगला हरफ अलावे इन्होंने अरबी, फारसी, गुरूमुखी, मराठी, तेलगु, वर्मी, चीनी आदि 14 भाषाओं के वर्णमालाओं का हरफ बनाया था।
3.125. यू० एन० राय प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना किसके द्वारा एवं कब की गई?
उत्तर : यू० एन० राय प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना उपेन्द्र किशोर राय चौधरी द्वारा 1885 ई० में की गई जो उस समय की एक बेहतरीन एवं दक्षिणी एशिया का प्रथम प्रिंटिंग प्रेस था ।
3.326. कोलकाता विज्ञान कॉलेज की स्थापना किसने और कब की?
उत्तर : कोलकाता विज्ञान कॉलेज (Calcutta Science College): कलकत्ता विज्ञान कॉलेज जो बंगाल में विज्ञान के क्षेत्र में हुई विकास का प्रतीक माना जाता है, की स्थापना सन्1914 ई० में आशुतोष मुखर्जी ने किया था। उनके इस कार्य में श्री तारकनाथ पालित और श्री रासबिहारी बोस ने सहयोग दिया।
3.127. जगदीश चन्द्र बसु ने बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना क्यों किया?
उत्तर : जगदीश चन्द्र बसु के प्रयास से बंगाल में सन् 1917 ई० में 'बसु विज्ञान मन्दिर' की स्थापना किया गया। बाद में चलकर 'बसु विज्ञान मन्दिर' का नाम 'बोस संस्था' (Bose Institute) रखा गया जहाँ विज्ञान से संबंधित हर प्रकार की शिक्षा दी जाती है। इस संस्थान के द्वारा केरल' के विष प्रभाव पर किये गये कार्य काफी महत्वपूर्ण है।
3.128. तकनीकी शिक्षा की संवर्द्धन के लिए सोसाईटी की स्थापना किसने किया और उसका उद्देश्य क्या था?
उत्तर : सन् 1938 ई० में कांग्रेस सरकार ने 'मेघनाथ साहा' की अध्यक्षता में तकनीकी शिक्षा संबंधित एक समिति का गठन किया। इस समिति ने भारत के विभिन्न प्रान्तों में तकनीकी शिक्षा के विकास पर जोर दिया । इस समिति के अन्य सदस्य थे - जगदीश चन्द्र बोस, बीरबल साहनी, शान्ति स्वरूप भटनागर एवं नजीर अहमद ।
विभाग-घ
|4.38. बंगाल में प्रिंटिंग प्रेस के विकास में उपेन्द्रकिशोर राय चौधरी की भूमिका का वर्णन करो।
उत्तर : 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बंगला साहित्य एवं प्रेस में अदभुत परिवर्तन आया जिसके कारण बंगला साहित्य (Bengali Literature) और मुद्रण (Press) दौर पड़े । ऐसा लगा मानो उनमें जान आ गयी । इसके पहले 19वीं शताब्दी के मध्य तक इन दोनों क्षेत्रों में कोई पहल नहीं था, जिसके कारण बंगला साहित्य एतं मुद्रण (Press) पिछड़ता चला गया था । लेकिन 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में एक ऐसे व्यक्ति का अभि-उदय हुआ जिनके प्रयास से बंगला साहित्य एवं मुद्रण (Press) का पर्याप्त विकास हुआ। उस महान व्यक्ति का नाम 'उपन्द्रकिशोर राय चौधरी' था। उपेन्द्रकिशोर राय चौधरी का जन्म सन् 1863 ई० में बांग्लादेश के मैमन सिंह जिला के मोउसा या मसूया गाँव में हुआ था जो उस समय बंगाल के अन्तर्गत था, अब यह बंगाल से अलग हो गया है अर्थात् यह गाँव अब बंग्लादेश का हिस्सा बन चुका है। उनके पिता का नाम कालिनाथ राय था। उनके पिता द्वारा दिया गया नाम कामदारंजन राय था । पाँच वर्ष की उम्र में एक अपुत्रक जमीदार ने उन्हें गोद ले लिया था और उनका नया नाम 'उपेन्द्रकिशोर रॉय चौधरी' रखा था। वे द्वारिकानाथ गांगुली के दामाद, लोकप्रिय हास्य लेखक सुकुमार राय के पिता तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सत्यजीत राय के दादा थे । उनकी मृत्यु सन् 1915 ई० में हो गयी। उपेन्द्रकिशोर राय चौधरी एक प्रसिद्ध बंगाली साहित्यकार थे। इसके साथ ही वे एक प्रसिद्ध चित्रकार, सितारवादक, गीतकार, तकनीशियन तथा उत्साही व्यवसायी भी थे उन्होंने भारत में पहली बार बच्चो के लिए 'संदेश' नामक पत्रिका का सुभारंभ किया, जो एक बंगाली मिठाई के नाम पर रखी गयी थी इन्होंने दक्षिण एशिया में प्रेस के क्षेत्र में आधुनिक अक्षर निर्माण कला (Block making) का निर्माण किया था इसके साथ ही रंगीन ब्लाक मेकिंग (Colour block making) का भी शुरूआत किये । इतना ही नहीं, उन्होंने कोलकाता में भी यह परम्परा शुरू की। उन्होंने स्वयं एक प्रकाशन संस्था का निर्माण किया तथा अपने प्रकाशन घर का नाम 'यू० एन० राय एण्ड सन्स (U. N. Roy and Sons) रखा जहाँ से अनेकों रचनाएँ प्रकाशित हुई जिनमें छेलेदेर या छोटोदेर रामायण', 'छोटोदेर महाभारत', 'गोपी गाइन बाघा बाइन तथा 'टुनटुनीर बोई इत्यादि प्रमुख रचनाएँ है । इतना ही नहीं, इन्होंने वैज्ञानिक तरीकों से 'छाया-प्रति (Negative making) का भी निर्माण किये थे इस कार्य की प्रशंसा न केवल भारत में हुआ था बल्कि ब्रिटेन की पत्रिका 'पेनरोज ऐनुवल वॉल्यूम - XI' (Penrose Annual Volume - XI) में भी काफी कुछ छपा था । इनके द्वारा स्थापित मुद्रणालय दक्षिण एशिया का पहला मुद्रणालय या प्रेस था, जहाँ से काले एवं सफेद (Block and White) तथा रंगीन ( Colourful) फोटोग्राफ्स मुद्रित होते थे।
4.39. | विश्वभारती की स्थापना में टैगोर की शिक्षा संबंधी धारणा का वर्णन करो।
उत्तर : रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, समाज सुधारक एवं राजनैतिक चिन्तक माने जाते थे। इतना ही नहीं, वे एक महान शिक्षाविद् भी थे रवीन्द्रनाथ टैगोर एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने जीवन में अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किये।
जैसे- शांतिनिकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना । रवीन्द्रनाथ टैगोर शिक्षा के प्रति अत्यन्त ही सजग रहते थे वे शिक्षा को सर्वोपरि देखना चाहते थे, तभी तो उनका मानना था कि शिक्षा मनुष्य के शरीर के कण-कण में निवास करती है। अर्थात् शिक्षा वह हो जो मनुष्य को सर्वोच्च स्थान दिलाने में मदद करे। इतना ही नहीं, मनुष्य को शिक्षा के माध्यम से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उससे मनुष्य का शारीरिक, सामाजिक, मानसिक तथा अन्य विकास होता है और मनुष्य को प्रगति के रास्ते पर ले जाता है। तभी तो रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा के संबंध में अपना विचार निम्नरूप व्यक्त करते हैं "सर्वोच्च शिक्षा वही है जो सम्पूर्ण सृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती है । टैगोर जी का मानना था कि शिक्षा मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, चारित्रिक विश्व-बंधुत्व और राष्ट्रीयता का विकास करता है । इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को शिक्षा के प्रति समर्पित होना चाहिए । रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने मनुष्य को बताने का प्रयास किया है कि किस प्रकार हमें शिक्षा अर्जित करना है, जिससे हमें या हमारे भीतर सभी प्रकार का बौद्धिक विकास हो पाये, शिक्षा या ज्ञान की प्राप्ति हो सके। शिक्षा के संबंध में उनका सिद्धान्त रहा है कि मनुष्य को शिक्षा ग्रहण करके प्रकृति का अनुसरण जीवन के क्रियाओं द्वारा, खेल-कूद द्वारा, बार-बार अध्ययन द्वारा, मनन द्वारा तथा ध्यान केन्द्रित करके करना चाहिए।
4.40. बंगाल में विज्ञान शिक्षा का विकास किस प्रकार हुआ ?
या, विज्ञान के विकास में 'इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस' का महत्त्व स्पष्ट करें।
या, 'इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। या, 'इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस' (IACS) पर संक्षिप्त प्रकाश डालें।
उत्तर : बंगाल में 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में विज्ञान के क्षेत्र में अनेकों विकास हुए, जैसे- 'कलकत्ता विज्ञान कॉलेज और 'बसु विज्ञान मंदिर की स्थापना आदि । इन सभी विकासों में 'इण्डियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस (IACS) महत्वपूर्ण स्थान रखती थी, जो भौतिक, रासायनिक, जैविक ऊर्जा तथा पदार्थ शिक्षा भी प्रदान करती थी। इस संस्था के पहले विज्ञान के क्षेत्र में। 9वीं शताब्दी के अंत तक विभिन्न संस्था को स्थापित किया गया, जिनमें कलकत्ता विश्वविद्यालय (1857 ई०) और होमियोपैथी मेडिकल कॉलेज(1880 ई०) तथा कलकत्ता साईस कॉलेज(1914 ई०) आदि हैं। इस शोध संस्था को 29 जुलाई, 1876 ई० को डॉ० महेन्द्रलाल सरकार ने स्थापित किया था ऐसा माना जाता है कि यह शोध संस्था भारत का सबसे प्राचीनतम शोध संस्था है । इसका मुख्य उद्देश्य भौतिकी, रासायन, जीव विज्ञान, ऊर्जा, बहुलक तथा पदार्थों के विषय में छात्र-छात्राओं को जानकारी देना तथा शिक्षित करना था ताकि छात्र-छात्राएँ विज्ञान के क्षेत्र में अग्रसर रूप से प्रौढ़ हो पायें । यह संस्था छात्र-छात्राओं को मानक (Doctorate) की उपाधि भी प्रदान करती है।
इसी शोध संस्था में चन्द्रशेखर वेंकटरमन सन् 1907 ई० से लेकर 1933 ई० तक भौतिक विज्ञान पर शोध कार्य करते हे। इन्होंने ही सर्वप्रथम सन् 1928 ई० में किरणों के परावर्तन का प्रभाव' (Celebrated effect on scattering of ohit) अर्थात् 'भौतिक विज्ञान' की खोज किया, जो बाद में चलकर 'रमन इफेक्ट' के नाम से जाना गया। इसी पर 'सी० वी० रमन को सन् 1930 ई० में "नोबेल पुरस्कार' दिया गया था जो विज्ञान के जगत में एक अहम स्थान रखती है। इतना ही नहीं अमेरिकन केमिकल सोसायटी' (American Chemical Society) ने सन् 1998 ई० में 'रमन प्रभाव' (Raman Effect) को अंतर्राष्ट्रीय ऐतिहासिक रासायनिक युगांतकारी घटना की स्वीकृति प्रदान की है IACS के प्रति डॉ० महेन्द्रलाल सरकार की योजना बहुत ही महत्वपूर्ण थी । उनका उद्देश्य मौलिक अन्वेषण करने के साथ-साथ विज्ञान को लोकप्रिय भी बनाना था । इसीलिए उसकी स्थापना उन्होंने किया था । धीरे धीरे यह शोध संस्था विज्ञान, ध्वनि विज्ञान, प्रकाश के प्रकीर्णन, चुम्बकत्व आदि विषयों में शोध का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया।
4.41. बंगाल में 'राष्ट्रीय शिक्षा परिषद' (National Education Council) के अवदान का अभिमूल्यन करो।
उत्तर : राष्ट्रीय शिक्षा परिषद : तकनीकी शिक्षा के विकास में नेशनल काउन्सिल ऑफ एडुकेशन' तथा 'राष्ट्रीय शिक्षा परिषद' का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य छात्र छात्राओं को तकनीकी शिक्षा प्रदान कराना था । इतना ही नहीं, छोटे-छोटे बच्चों को तकनीकी शिक्षा किस प्रकार प्राप्त हो इसका भी ध्यान रखा जाता था । इस कार्य में अनेकों की शिक्षा के प्रेरणा स्रोत थे जिनमें रवीन्द्रनाथ टैगोर, अरबिन्द घोष, राजा सुबोध चन्द्र मल्लिक, ब्रजेन्द्र किशोर रॉय चौधरी इत्यादि उल्लेखनीय है। ऐसे तो माना जाता है कि राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल(The National Council of Education Bengal)का जन्म बंग-भंग के दौरान किया गया स्वदेशी आन्दोलन (1905 ई०) द्वारा हुआ था अर्थात् राष्ट्रीय शिक्षा परिषद्, बंगाल की स्थापना सन् 1906 ई० में प्रमुख शिक्षाविदों के सम्मिलित प्रयासों से हुआ था । इस परिषद् के तहत राज्य के समस्त विज्ञान एवं तकनीकी स्कूल एवं कॉलेज खोले गये । इसी परिषद ने 'बंगाल तकनीकी कॉलेज(B.I.T.) की स्थापना किया। बाद में चलकर राष्ट्रीय शिक्षा परिषद, बंगाल सन् 1955 ई० में यादवपुर विश्वविद्यालय' में मिला दिया गया । इस परिषद की स्थापना में प्रमुख भूमिका 'रासबिहारी घोष', 'आशुतोष चौधरी', 'नरेन्द्रनाथ दत्त' था 'सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने पालन किया था। इस तरह बंगाल में विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के विकास में कलकत्ता विज्ञान कॉलेज' तथा 'राष्ट्रीय शिक्षा परिषद्, बंगाल' की असमिया महत्वपूर्ण भूमिका रही।
4.42. मनुष्य, परिवेश एवं शिक्षा के समन्वय में रवीन्द्रनाथ टैगोर की धारणा क्या था ?
उत्तर : रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि, चिन्तक तथा समाज सुधारकों में गिने जाते थे। इसी आधार पर रवीन्द्रनाथ टैगोर एक महान कवि के साथ-साथ एक महान शिक्षक भी थे । टैगोर जी ने एक शिक्षक के रूप में छात्रों एवं छात्राओं के लिए हर सम्भव कार्य किये जिनकी जरूरत उनको थी । एक शिक्षक के रूप में टैगोर जी का प्रारम्भिक कार्य छात्र - छात्राओं को सही आचारण, व्यवहार और अच्छी ज्ञान प्राप्त कराना था।
रवीन्द्रनाथ टैगोर खुद एक शिक्षक थे । इसीलिए उन्होंने 'प्रकृति' को महान शिक्षक की दर्जा दिया है जो हमेशा जीवित रहता है अर्थात् महान शिक्षक होने के साथ-साथ, एक जीवित शिक्षक भी। 'प्रकृति के साथ रहकर अबोध बच्चे जीवन के हर एक रहस्य को सीख पाते हैं । 'प्रकृति' एक अबोध मनुष्य को बोधगम्य बनाती है । टैगोर जी का मानना है कि समाज में पठन-पाठन का केन्द्र या विद्यालय खुले प्राकृतिक वातावरण में हों ताकि बच्चे खुले प्राकृतिक वातावरण में पढ़कर विकसित हो पायेंगे। इतना ही नहीं, बच्चे प्रकृति की गोद में रहकर ममता रूपी प्यार पाकर बहुत कुछ सीख पाते हैं । इस संदर्भ में रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथन है
"सांसारिक बन्धनों में पड़ने से पहले बालों को अपने निर्माण काल में प्रकृति का प्रशिक्षण प्राप्त करने दिया जाना चाहिए।" रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार प्रकृति या वातावरण में एक विद्यालय के सभी सामान हैं। जैसे- किताबें, पाठ्यक्रम, डेस्क, श्यामपट, शिक्षक या शिक्षिका तथा विद्यालय का माहौल आदि । अर्थात् प्रकृति या वातावरण खुद एक शिक्षक है, उनकी विभिन्न दृश्य किताबें एवं पाठ्यक्रमें हैं, जहाँ बच्चे प्रकृति या वातावरण में विद्यालय के भाँति पढते एवं सीखते हैं। इसीलिए टैगोर जी के अनुसार प्रकृति या वातावरण एक महान जीवित शिक्षक है।
उपर्युक्त उल्लेखों से हम पाते हैं कि प्रकृति का वातावरण सही रूप में एक महान् जीवित शिक्षक है, जिसका वर्णन टैगोर जी ने किया है।
4.43. औपनिवेशिक शिक्षा से तुम इतिहास एवं पर्यावरण क्या समझते हो ? शिक्षा-शास्त्रियों ने इस शिक्षा नीति की समालोचना क्यों किया है ?
उत्तर : औपनिवेशिक शिक्षा : भारत में शिक्षा को लेकर अनेक उतार-चढ़ाव हुआ जिसमें भारत देश का भविष्य निहित था । उतार-चड़ाव कहने का मतलब अंग्रेजों के समय में भारतीय शिक्षा में अनेकों बदलाव किया गया यह सभी बदलाव देखा जाय तो अंग्रेज अपने पक्ष में ही करते थे। अपनी सभ्यता तथा संस्कृति को भारतीय शिक्षा के माध्यम से भारतवासियों के ऊपर थोपना चाहते थे अर्थात् अंग्रेजी प्रशासन भारतवासियों के शोषण करने हेतु हर हथकण्डे अपनाया करते थे । परन्तु इस प्रशासन में ही कुछ ऐसे गवर्नर-जनरल भी थे, जो न केवल अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देते थे बल्कि संस्कृति शिक्षा को भी बढ़ावा देते थे। अंग्रेजों की अंग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत में प्राच्य शिक्षा के अलावा पाश्चात्य शिक्षा को अधिक महत्व देते थे । वे प्राच्य एवं पाश्चात्य भाषाओं में समन्वय सथापित न करके उनमें मतभेद पैदा किया करते थे ताकि प्राच्य भाषा का अन्त हो जाये।
लेकिन कुछ गवर्नर जनरल पाश्चात्य शिक्षा के साथ-साथ प्राच्य शिक्षा को भी लेकर चलना चाहते थे। एसे गवर्नर जनरलों ने बहुत सारे विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों की स्थापना किये।
समालोचना : भारतीय शिक्षा शास्त्रियों औपनिवेशिक शिक्षा व्यवस्था की समालोचना प्राच्य और पाश्चात्य शिक्षा व्यवस्था के आधार पर किये। इसके निम्न कारण है
(i) लार्ड मैकाले की शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी यह थी इसके द्वारा छात्रों को भारतीय संस्कृति और सभ्यता से दूर रखने का प्रयास किया गया था। इस शिक्षा व्यवस्था को धर्म से भी दूर रखा गया था । रवीन्द्रनाथ चाहते थे कि विद्यार्थी के मस्तिष्क में धार्मिकता का विकास हो तथा नैतिकता और चरित्र का विकास भारतीय आदर्शों के अनुकूल हो।
(ii) मैकाले की शिक्षा व्यवस्था में मातृभाषा को अनदेखा किया गया था जबकि अधिकतर शिक्षाविद यह मानते थे कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए । महान् चिन्तन रवीन्द्रनाथ ने अपने विद्यालय में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को ही माना।
(iii) मैकाले की शिक्षा व्यवस्था का मूल उद्देश्य मात्र रोटी और भौतिकता तक सीमित था । भारत में शिक्षा संचालक साधु-संत तथा ऋषि-मुनि थे जो नैतिक गुणों और आध्यात्मिकता पर जोर देते हैं।
Life science ka bhajiye
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