MADHYAMIK HISTORY | CHAPTER 2 | in Hindi | CLASS 10 | West Bengal Board | WBBSE
पश्चिम बंगाल बोर्ड के छात्रों के लिए
CLASS X HISTORY CHAPTER II
TO THE POINT
ILLUSTRATED
पहला भाग
पत्रिकाएं और उपन्यास
समाचार पत्र और पत्रिकाओं का छपना बंगाल में कुछ ऐसे समय में शुरू हुआ था जब टी० वी० तो दूर की बात है, कैमरा भी भारत में नहीं आया था। इस तरह टी० वी० में आने वाले अलग अलग चैनल की तरह पत्रिकाओं (समाचार पत्रों) में समाचार के साथ साथ कहानियां, कविताएं, गीत इत्यादि भी छपे जाते थे।
सोमप्रकाश पत्रिका :
सोमप्रकाश एक साप्ताहिक(सप्ताह में एक बार आने वाला) अखबार था जिसे ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने संपादित किया था।
इसमें भी नील किसानों पर हो रहे अत्याचार के बारे छापा गया और नील फैक्ट्री के मालिकों(निलाहे गोरों) की बुराई की गई थी।
1878 में वार्नाकुलर प्रेस एक्ट आने पर इसका संपादन रुक गया।
बाद में अंग्रेज सरकार को यह कानून वापस लेना पड़ा और सोमप्रकाश का संपादन फिर शुरू हुआ।
NOTE : वार्नाकुलर प्रेस एक्ट 1878 एक ऐसा कानून था जो बंगला समाचार पत्रों को छापने से रोकने के लिए बनाया गया था जिससे की वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ न छाप सके।
बंबोधीनी पत्रीका :
इसके मुख्य संपादक उमेश चंद्र दत्त थे।
• बामबोधिनी पत्रिका मुख्य रूप से नारी शिक्षा को बढ़ावा देने और समाज में महिलाओं की दशा में सुधार लाने के लिए लेख इत्यादि छपा करती थी।
• आगे चल कर बामबोधिनी सभा नाम की संस्था भी बनाई जिसमें महिलाओं के विकास विकास के लिए कोशिशें की गई।
• बामबोधिनी पत्रिका ने उदार वादी आंदोलन भी चलाया जिसमे अंग्रेजो के भारत ने रहने से समाज में नारियों की अवस्था सुधारने की संभावनाओं पर बात की गई।
हिन्दू पैट्रियट :
हिंदू पैट्रियट के संपादकों ने अंग्रेज सरकार के भ्रष्टाचार के बारे में लोगो को बताने और जागरूक करने के लिए इस पत्रिका का संपादन शुरू किया था।
नील विद्रोह (1859) में हिंदू पैट्रियट पत्रिका ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसने अपने संपादन से नील किसानों पर अंग्रेज व्यापारियों द्वारा किए जाने वाले अत्याचार की खबर को बेझिझक छपा।
इसमें मुख्य संपादक हरीशचंद्र मुखर्जी थे। नील विद्रोह पर लिखने के वजह से हरीशचंद्र मुखर्जी को अंग्रेजो ने इतना परेशान किया के उनकी मृत्यु हो गई।
ग्रामबर्ता प्रकाशिका :
इस पत्रिका का सम्पादन कंगाल हरिनाथ ने शुरू किया था। इनका असली नाम हरिनाथ मजूमदार था लेकिन पत्रिका को छापने के लिए इन्हें दूसरो से
पैसे उधार लेना पड़ा था। तभी से इनका नाम कंगाल हरिनाथ रख दिया गया।
ग्रामवर्ता प्रकाशिका पत्रिका में राजनैतिक जानकारी, नील किसानों पर अंग्रेजो का अत्याचार और शिक्षा के प्रसार को ले कर रचनाएं छापी गई।
बंगदर्शन :
1872 में शुरू हुई बंगदार्शन एक मासिक पत्रिका थी जिसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने सम्पादित किया था।
BANKIMCHANDRA CHATTERGY |
इस कहानी में देशभक्ति की भावना है। आनंदमठ उपन्यास में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने वन्देमातरम गीत लिखा था।
NOTE : संन्यासी फकीर विद्रोह 1798 में अंग्रेजो के खिलाफ हुआ था। इसके बारे में आपको चैप्टर 3 में पढ़ना है। बंकिम चंद्र का आनंदमठ सन्यासी विद्रोह के 84 साल बाद 1882 में आया।
नील दर्पण :
जब नील किसानों के ऊपर अंग्रेज व्यापारी अत्याचार करके उनसे जबरदस्ती नील उगवाते थे। ऐसे समय में लेखक दिनबंधु मित्र ने नील दर्पण नाटक लिखा, जिसकी कहानी नील किसानों के ऊपर लिखी गई थी।
इसे 1858-59 के बीच लिखा गया। एक साल बाद 1860 में इसको बंगला में ढाका से किताब के रूप में छापा गया। इसके एक साल बाद 1861 में इसे जेम्स लॉन्ग ने अंग्रेजी में छपा। इसको अंग्रेजी में अनुवाद (ट्रांसलेट) किया था माइकल मधुसूदन ने।
NOTE : नील विद्रोह 1859 में हुआ था जिसके बारे में अपको चैप्टर 3 में पढ़ने को मिलेगा।
हुतुम पेंचार नक्शा :
भारत के कुछ लोग अंग्रेजो का साथ दिया ( चमचा गिरी) करते थे। इसमें बंगाल के बाबू वर्ग के लोग आते थे जो अंग्रेजो के दफ्तरों में काम करते थे।
1862 में छापी किताब हुतुम पेंचार नक्शा इन्ही लोगो के ऊपर लिखी गई थी। इसे लिखा था कालीप्रसन्न सिन्हा ने।
NOTE: नील दर्पण छापने के बाद अंग्रेजो ने जेम्स लॉन्ग के ऊपर जुर्माना लगा दिया था। जुर्माने की पूरी रकम कालीप्रसन्न सिन्हा ने ही दी और जेम्स लॉन्ग को बचाया।हिंदू पैट्रियोट के संपादक हरीश चंद्र मुखर्जी के मरने के बाद के बाद हिंदू पैट्रियट को कलिप्रसन्न सिन्हा ने खरीद लिया और डूबने से बचाया। कलिप्रसन्न्न सिन्हा एक दानी व्यक्ति थे।
दूसरा भाग
शिक्षा और समाज सुधार
अंगल प्राच्या विवाद :
हर 20 साल बाद ब्रिटेन में चार्टर एक्ट पास किया जाता था जिससे ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भारत पर राज करने से जुड़े नियम कानून तय किए जाते थे। हर 20 साल बाद नया चार्टर एक्ट आता था।
चार्टर अधिनियम 1813 में ईस्ट इंडिया कंपनी को कहा गया की भारतीयों को शिक्षा देने का काम शुरू किया जाय।
ये काम करने के लिए कंपनी ने 10 लोगो का एक ग्रुप बनाया जिसे मुश्किल भाषा में समिति कहा जाता है। फिर इस समिति के ज्ञानी लोगो में झगड़ा शुरू हो गया।
प्राच्यवादी—एक दल चाहता था कि भारत में देशी शिक्षा दी जाए जिसमे शास्त्र और भाषा सिखाया जाएगा।
अंगलवादी - दूसरा दल चाहता था भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा दी जाए जिसमे विज्ञान, वाणिज्य इत्यादि सिखाया जाए।
विवाद चलता रहा और अगले 22 साल (1835) तक कोई समाधान नहीं निकला।
राजा राममोहन राय और अंग्रेज़ी शिक्षा :
राजा राममोहन राय जानते थे कि प्राच्य शिक्षा का इस जमाने में कोई महत्व नहीं है। भारतीयों को अंग्रेजी शिक्षा देने के
लिए इन्होंने खुद एक कॉलेज खोलने का सोचा। इसके लिए पैसे चाहिए थे।
ऐसे में इन्हे डेविड हेयर मिलते है जिनका घड़ी का व्यापार था और उनके पास पैसा भी था।
1816 में थोड़ा डेविड हेयर से, थोड़ा धनी व्यक्तियों से और थोड़ा सरकार से भी पैसा इकट्ठा करके,
1817 में राजा राम मोहन राय ने हिंदू कॉलेज की स्थापना की जहां अंग्रेजी शिक्षा दी जाने लगी।
डेविड हेयर 1817 में कलकत्ता स्कूल बुक सोसाइटी का गठन करते हैं जिससे स्कूल कॉलेज को अंग्रेजी और बंगला में किताबें मिल सकें।
इसमें राधाकांत देव भी जुड़ जाते हैं और कलकत्ता में स्कूलों की शिक्षा के विकास के लिए 1818 में कलकत्ता स्कूल सोसाइटी बनाते हैं।
राधाकांत देव ने कई किताबे लिखी और डेविड हेयर ने कई स्कूल खोलने का काम किया।
राजा राममोहन राय और सती प्रथा :
राधाकांत देव और डेविड हेयर शिक्षा के कार्य में लगे थे तभी
राममोहन राय के भाभी को सती प्रथा के कारण जला दिया गया। इसके बाद 1819 से राममोहन सती प्रथा को खतम करने के लिए जुट गए।
वे कलकत्ता के शमशान घाटों में जाके लोगो को सती प्रथा करने से रोकने लगे ।अपनी पत्रिका संवाद कौमुदी से लोगो में सती के बारे में जागरूक किया।
इसमें उन्हें बहुत समय लगने वाला है और इस बीच डीरोजियो आते हैं।
डिरोजियो और यंग बंगाल :
1827 में राममोहन राय के हिंदू कॉलेज में एक शिक्षक के तौर पे डीरोजियो [हेनरी लुई विवियन डीरोजियो] आते है।
डीरोजियो ने पढ़ने के साथ साथ छात्रों को छुआछूत, जात- पात अंधविश्वास को छोड़ कर सत्य और खुली सोच को अपनाने को कहा।
छात्र उनसे प्रभावित हुए और एक स्टूडेंट्स यूनियन बनाया जिसका नाम था यंग बंगाल। इन्होंने 1828 में एकेडमिक एसोसिएशन का भी गठन किया।
यंग बंगाल के छात्र पत्रिकाओं में छुआछूत, जात पात, सती प्रथा,नारी अधिकार इत्यादि पे लेख लिखने लगे, लेकिन यह सब जरूरत से ज्यादा आगे चला गया और वे लोग हिंदू धर्म का ही विरोध करने लगे और अपना धर्म परिवर्तन करने लगे।
इसके लिए डिरोजियो को कॉलेज से निकाल दिया गया था। 22 साल की उमर में डिरोजिओ की हैजे से मौत हो गयी।
यंग बंगाल का आंदोलन ज्यादा सफल नहीं हो सका क्योंकि इन्होंने पत्रिकाओं के अलावा लोगो के बीच जा कर अपनी बात नही रखी।
लेकिन उन्होंने आधुनिक बंगाल की आधुनिक सोच की शुरुआत की। यंग बंगाल के कई सदस्य आगे चल कर जीवन में बहुत सफल हुए।
Note: आपके पश्चिम बंगाल बोर्ड का सेंटर का नाम भी डीरोजियो भवन है।
राजा राममोहन राय और सती प्रथा कानून :
डिरोजियो के यंग बंगाल आंदोलन आने तक यहां राजा राममोहन राय को 9 साल हो गए थे सती प्रथा से लड़ते हुए। उन्होंने जात पात के खिलाफ भी आंदोलन किया। और 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की।
सती को रोकने के लिए उन्होंने गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिंक को कहा कि वे सती को कानूनी तौर से अपराध घोषित कर दें। लार्ड विलियम बेंटिंक मान गए और 1829 में बंगाल सती रेगुलेशन एक्ट 1829 लाया गया जिससे 1829 से सती एक अपराध बन गया।
अंग्रेजी शिक्षा के लिए हिंदू कॉलेज, जात पात के विरुद्ध ब्रह्म समाज और सती कानून राममोहन राय की तीन बड़ी सफलताएं थी।
1833 में राममोहन की मृत्यु हो गई। डेविड हेयर ने घड़ी की दुकान बेंच कर एक छोटा घर लिया और बाकी पैसा शिक्षा के लिए दान कर दिया। राधाकांत देव आगे भी अपना काम करते रहे।
Note : chapter 5 में राधाकांत देव के बाकी कामों के बारे में पढ़ने को मिलेगा।
राममोहन के हिंदू कॉलेज के पहले भी कई लोगो ने कॉलेजों और स्कूलो की स्थापना करके अंग्रेजी शिक्षा और देशी शिक्षा देने का काम किया था जिसे MCQ में पूछा जाता है।
1781 — कलकत्ता मदरसा - वारेन हेस्टिंग्स
1792 — बनारस संस्कृत कॉलेज — जोनाथ डंकन
1800 — फोर्ट विलियम कॉलेज — लार्ड वलेजीली
मैकाले मिनटऔर अंगल प्राच्या विवाद खत्म :
गवर्नर जनरल विलियम बेंटिंक ने विवाद को बंद करने के लिए लार्ड मैकाले को आदेश दिया। मैकाले ने देशी शिक्षा और अंग्रेज़ी शिक्षा में से अंग्रेजी शिक्षा को चुना।
1835 में मैकाले ने मैकाले मिनट (मैकाले संस्तुति) नाम का दस्तावेज पेश किया। मैकाले मिनट में भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा देने से सरकार को क्या - क्या फायदा होगा यह लिखा था।
मैकाले मिनट में लिखा था।
खर्च बचेगा : अंग्रेजी शिक्षा देने से हम भारतीयों से अपना काम ले सकते हैं जिससे काम करने के लिए इंग्लैंड से लोगो को भारत नही मंगाना पड़ेगा।
अंग्रेजी भाषा का प्रसार : अंग्रेजी शिक्षा से अंग्रेजी भाषा भारत में मुख्य भाषा बन जाएगी और अंग्रेज़ी शासन को भी भारतीय मन लेंगे।
भारतीयों को अंदर से अंग्रेज बनाना : अंग्रेजी सीख के भारतीय रंग से काले रहेंगे पर विचार और बुद्धि से अंग्रेज बन जाएंगे।
भारत में ईसाई धर्म का प्रसार : अंग्रेजी शिक्षा से ईसाई धर्म को भारत में फैलाने में आसानी होगी।
सरकार ने अंग्रेजी शिक्षा देने का विचार मान लिया और इस तरह एंगल प्राच्या विवाद खत्म हो गया।
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज :
मैकाले मिनट निकलने के 2 दिन पहले ही 28 जनवरी 1835 को विलियम बेंटिंक ने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना की। कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में शिक्षक मधुसूदन गुप्त वो पहले भारतीय डॉक्टर थे जिन्होंने पहली बार पोस्टमार्टम (मानव अंग प्रत्यारोपण) किया था। कलकत्ता मेडिकल कालेज में प्रथम प्रधानाध्यक्ष एम ०जे ० ब्रेमली थे।
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में महिलाओं की भर्ती नही ली जाती थी।
मैकाले मिनट के बाद शिक्षा फैल तो रही थी पर महिलाओं के लिए कुछ भी नही था। और इसी समय ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने अपना काम किया।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, बेथुन और नारी शिक्षा :
विद्यासागर मानते थे की अगर महिलाओ को समाज के अत्याचार से बचाना है तो उन्हें शिक्षित करके अपने पैर पर खड़ी हो सकें।
अंग्रेज सरकार भी नारी शिक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही थी। ऐसे में
1849 में ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने बेथुन के साथ मिल कर बेथून स्कूल(सेकुलर नेटिव फीमेल स्कूल) की स्थापना की। इसके लिए बेथुन ने अपनी सारी संपत्ति दे दी।
ड्रिंकवाटर बेथुन ने विद्यासागर का उसी तरह साथ दिया जैसे 32 साल पहले डेविड हेयर ने राममोहन राय का दिया था।
विद्यासागर और विधवा विवाह :
37 साल पहले राजा राममोहन राय ने विधवा औरतों को सती प्रथा से बचाने पर काम किया और विद्यासागर ने विधवा औरतों के दोबारा विवाह के लिए।
1856 में विद्यासागर के प्रयासों से गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने विधवा पुनर विवाह कानून 1856 पारित किया।
1857 में विद्यासागर ने 35 कन्या विद्यालय शुरू किए जिसमे 1300 कन्याओं को शिक्षा दी जा सकती थी।
1870 में जॉर्ज कैंपबेल जब भारतीयों के लिए बनाए कुछ
स्कूलों को बंद कराया तो विरोध के रूप में विद्यासागर ने मेट्रोपोलिशन इंस्टीट्यूट की स्थापना की।
वुड्स डिस्पैच और कालेज तथा उच्च शिक्षा :
मैकाले के मैकाले मिनट से अंगल प्राच्य विवाद खतम होकर सरकार ने अंग्रेजी शिक्षा को भारत में शुरू तो किया था। लेकिन इन 19 सालो में सरकार बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पाई।
1853 में चार्ल्स वुड्स ने भारत में अंगरेजी शिक्षा कैसे दी जाय इस बारे में अपनी योजना(प्लान) और सुझाव दिए जिसे वुड्स डिस्पैच कहा गया।
वुड्स डिस्पैच में बताया गया था —
• माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों को बोर्ड के अंतर्गत कर दिया जाय जिससे की परीक्षाएं बोर्ड करवा सके और सभी बच्चों की परीक्षाएं समान तरीके से ली का सकें (जैसे कि आप की परीक्षा होगी)
• कॉलेजों को यूनिवर्सिटी के अंतर्गत किया जाए।
• बच्चों को शुरू की शिक्षा(1 से 5 तक) उनकी ही भाषा में दी जाय। 6 से 10 तक अंगरेजी भाषा भी सिखाई जाय। और आगे की शिक्षा (11,12, कॉलेज, इत्यादि) केवल अंग्रेजी में ही दी जाय।
वुड्स डिस्पैच को ध्यान में रखते हुए 1857 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी (कलकत्ता विश्व विद्यालय) की स्थापना हुई।
ब्रम्ह समाज के साथ क्या हुआ :
यह दो भाग में टूट गया।
1828 में राजा राममोहन द्वारा बनाया गया ब्रम्ह समाज पूरे भारत में प्रसिद्ध था। लेकिन 1833 में राममोहन की मृत्यु हो गई।
इसके बाद ब्राम्ह समाज कई लोगों के हाथ में गया और
1866 में केशवचंद्र और देवेंद्रनाथ टैगोर के बीच मतभेद होने के कारण ब्राम्ह समाज दो भाग (आदि ब्राम्ह समाज और कलकत्ता ब्राम्ह समाज)में बंट गया। ।
लेकिन वे हमेशा समाज के भले के लिए काम करते रहे।
संपादन एवं पारीकल्पना – ATR INSTITUTE
पश्चिम बंगाल बोर्ड ( WBBSE / WBSHCE ) के छात्रों की शिक्षा आसान और आकर्षक बनने के लिए ATR INSTITUTE का प्रयास
An Effort by ATR Institute to make Education easy and intresting for students of West Bengal Board.
Editor and Illustrator : BAGISH PANDEY
Technical Support : AKASH SHAW
Class 12th HINDI HISTORY CHAPTER—2, August, 2021 Publish
Contacts : 7003 298 623 / 6290 889 433
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